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यह एक अत्यधिक संक्रामक रोग है, जो मुख्य रूप से फेफड़ों को प्रभावित करती है। यह शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकती है। यह माइकोबैक्टीरियम ट्युबरक्युलोसिस नामक बैक्टीरिया के कारण होती है।
यह क्रोनिक, गंभीर और कभी-कभी जानलेवा प्रकृति की होती है।
डब्ल्यूएचओ के अनुसार, 2018 में टीबी के कारण लगभग 15 लाख लोगों की मौत हुई थी, जिनमें से 251000 लोगों को एचआईवी संक्रमण भी था। यह मौत के 10 सबसे प्रमुख कारणों में से एक, तथा एकल संक्रामक एजेंट से होने वाली मौत का एक अग्रणी कारण है। वर्ष 2018 में, दुनिया भर में टीबी से 10 मिलियन लोग बीमार हुए थे, जिनमें से 5.7 मिलियन पुरुष, 3.2 मिलियन महिलाएं और 1.1 मिलियन बच्चे थे।
आंकड़ों से पता चलता है कि, टीबी के सभी नए मामलों, के 87 प्रतिशत मामलें इससे सबसे ज्यादा प्रभावित 30 देशों में पाये जाते हैं, और इनमें से भी 8 देशों में इसके मामले 2/3 होते हैं। इन सब में भारत सबसे आगे है, इसके बाद चीन, इंडोनेशिया, फिलीपींस, पाकिस्तान, नाइजीरिया, बांग्लादेश और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों का नंबर आता हैं।
मल्टीड्रग रेसिस्टेंट टीबी (एमडीआर-टीबी) एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है, तथा यह स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए खतरा बना हुआ है। डब्ल्यूएचओ के अनुमान के मुताबिक, रिफाम्पिसिन रेसिस्टेंट के 4,84,000 नए मामले सामने आये थे, जिनमें से 78 प्रतिसत मामले एमडीआर-टीबी के थे। रिफाम्पिसिन, टीबी के मरीजों को शुरुआत दी जाने वाली सबसे प्रभावशाली दवाई है।
• टीबी एक बहुत ही संक्रामक रोग है। यह हवा में मौजूद सूक्ष्म बूंदों के माध्यम से एक व्यक्ति से दूसरे में आसानी से फैल सकता है।
• ये सूक्ष्म बूंदें संक्रमित व्यक्ति के छींकने, खाँसने, बात करनें, थूकने, हंसने, गाने, यहां तक कि रोने के दौरान निकलती है।
• टीबी से संक्रमित व्यक्ति के खाँसने से, लगभग 3000 संक्रमित सूक्ष्म बूंदें उत्पन्न हो सकती है।
• यह माइकोबैक्टीरियम ट्युबरक्युलोसिस नामक एजेंट के कारण होता है।
• किसी व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता, टीबी की रोकथाम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। एक मजबूत प्रतिरक्षा प्रणाली वाला व्यक्ति में बैक्टीरिया से संक्रमित होने के बावजूद भी कोई लक्षण दिखायी नहीं देते हैं। जब यह प्रतिरक्षा प्रणाली, व्यक्ति के शरीर के अंदर मौजूद माइकोबैक्टीरियल के विकास को नहीं रोक पाती है, तब इससे सक्रिय टीबी का विकास होता है।
• आम तौर पर टीबी के 85 प्रतिशत मामले फेफड़ों के होते हैं। बाकी मामले खून के अधिक दौड़ान वाले क्षेत्र में होते है जैसे, हड्डियाँ, दिमाग, किडनी, आंखें, जीआई ट्रैक्ट, कोरॉयड आदि।
• कारक एजेंट: यह माइकोबैक्टीरियम ट्युबरक्युलोसिस नामक एजेंट के कारण होता है।
• ट्रांसमिशन: यह संक्रमित व्यक्ति के छींकने, खांसने, बात करने या हंसने के कारण होता है।
• कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यूनिटी): कम प्रतिरक्षा वाले लोग बैक्टीरियल विकास के खिलाफ नहीं लड़ पाते हैं, जिसके कारण वह टीबी से संक्रमित हो जाते हैं।
• आयु: अधिक उम्र के और बहुत कम उम्र के लोगों में टीबी के विकसित होने का खतरा ज्यादा होता है।
• पुराने स्वास्थ्य के मुद्दे: डायबिटीज और किडनी की बीमारी से पीड़ित व्यक्ति में टीबी के विकसित होने का खतरा अधिक होता है।
• कैंसर: सिर और गर्दन के कैंसर से पीड़ित, और कीमोथेरेपी पाने वाले लोगों में टीबी विकसित होने का खतरा अधिक होता है।
• दवाएं: वह दवायें जिनका इस्तेमाल रूमेटॉयड आर्थराइटिस, सोरायसिस, क्रोन्स डीजीज, ल्यूपस जैसी बीमारियों में किया जाता है, उनसे टीबी होने का खतरा होता है। ट्रान्सप्लान्ट के मामले में इस्तेमाल होने वाली इम्यूनोसप्रेसेंट दवाओं के इस्तेमाल से टीबी होने का खतरा बना रहता है।
• कम प्रतिरक्षा प्रणाली (इम्यूनिटी): एचआईवी से पीड़ित लोगों को अवसरवादी संक्रमण विकसित होने का खतरा होता है।
• तंबाकू धूम्रपान के कारण।
• कुपोषण/कम वजन के कारण।
• नशीली दवाओं के दुरुपयोग के कारण।
• हेल्थकेयर वर्कर: ये लोग टीबी से पीड़ित मरीजों के साथ काम करते हैं, इसलिए इन्हे खुद के संक्रमित होने का खतरा अधिक होता है।
• यात्रा: अफ्रीका, एशिया, पूर्वी यूरोप, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन जैसी जगहों पर जाने से टीबी विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है, क्योंकि इन जगहों पर टीबी के मामलों की संख्या अधिक होती है।
टीबी तीन प्रकार की होती है। ये लैटेंट, एक्टिव और मिलेरी ट्युबरक्युलोसिस के नाम से जानी जाती है।
लैटेंट: जब किसी व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली बहुत मजबूत होती है, तब वह बैक्टीरिया के बढ़ने के खिलाफ वापस लड़ती है। इन लोगों में आम तौर पर कोई लक्षण नहीं होते है, और वह सामान्य दिखाई देते हैं। इनका एक्स-रे साफ होता है, हालांकि यह लोग ट्यूबरक्यूलिन परिक्षण या इंटरफेरॉन गामा रिलीज एस्से (IGRA) के लिए कुछ प्रतिक्रिया दिखा सकते हैं।
सक्रिय (एक्टिव): जब किसी व्यक्ति की प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है, और वह बैक्टीरिया के खिलाफ लड़ने में सक्षम नहीं होती है। इससे शरीर के अंदर बैक्टीरिया का विकास होता है, जिससे खांसी, सीने में दर्द और वजन कम होने जैसे लक्षणों का विकास होता है। यह हवा की बूंदों से दूसरों में फैल सकता है।
मिलेरी: यह सक्रिय रोग का एक रूप है। इसमें बैक्टीरिया खून में प्रवेश करते हैं, जिससे वह पूरे शरीर में फैल जाते हैं। इस तरह यह सभी अंगों को प्रभावित करते हैं, और बहुत तेजी से घातक साबित होते हैं।
• 3 सप्ताह से अधिक समय तक रहने वाली खांसी
• सीने में दर्द होना
• खांसी या थूक में खून निकलना
लैटेन्ट टीबी | एक्टिव टीबी |
---|---|
इसमें कोई लक्षण नहीं होते हैं | इसमें हल्का बुखार आता है, तथा शाम को शरीर का तापमान बढ़ जाता है |
3 महीने से अधिक समय तक खाँसी रहती है | |
कमजोरी और थकान महसूस होती है | |
खाँसी के दौरान या थूक में खून आता है | |
वजन में कमी होती है | |
भूख कम लगती है | |
रात में पसीना आता है | |
फैलाव | |
इसमें संक्रमण दूसरों को नहीं फैलता है | इसमें संक्रमण हवा में छोटी-छोटी बूँदों से फैलता है |
एक्स-रे | |
इसमें एक्स-रे सामान्य होता है | इसमें एक्स-रे असामान्य होता है |
त्वचा और खून की जाँच | |
पोजिटिव | पोजिटिव |
• खांसी या थूक के माध्यम से बड़े पैमाने पर खून निकलता है
• मानसिक स्थिति में बदलाव होता है
• त्वचा या नाखूनों का रंग नीला बदरंग हो जाता है
• सांस लेने में कठिनाई होती है
• छाती में जकड़न होती है
• बढ़ा हुआ हार्ट रेट
• बड़े पैमाने पर हीमोप्टिसिस होता है।
• न्यूमोथोरेक्स – इसमें हवा, प्ल्युरा और फेफड़ों के बीच इकट्ठा हो जाती है।
• प्ल्यु्रल एफ्यूजन – इसमें फेफड़ों में तरल पदार्थ भर जाता है।
• ट्युबरक्युलोसिस एम्पेमा- जब संक्रमित तरल पदार्थ प्ल्युरा के बीच इकट्ठा हो जाता है।
• कॉर्पलमोल और पल्मोनरी हाइपरटेंशन- जब फेफड़ों में गंभीर चोट ओैर नुकसान होता है, तो यह फेफड़ों की नसों को नष्ट कर देता हैं।
• रोगी का उचित इतिहास: इसमें रोगी का इतिहास लेना जैसे, शाम को तापमान में वृद्धि, समय, खांसी या थूक में खून की मात्रा के बारे में पूछना, और सतर्क संकेतों को देखना आवश्यक होता है।
• शारीरिक परिक्षण: छाती की आवाज सुनना, जोकि महत्वपूर्ण होता है।
• स्प्यूटम स्मियर: यह एसिड फास्ट बेसिलस स्मियर और कल्चर को करने के लिए इकट्ठा किया जाता है। इसमें थूक को आमतौर सुबह में, लगातार 3 दिनों तक इकट्ठा किया जाता है (गैस्ट्रिक एस्पिरेट एक बेहतर नमूना दे सकता है)। अस्पताल में भर्ती रोगी में यह हर 8 घंटे में एकत्र किया जाता है।
• त्वचा का परीक्षण: इसमें 0.1 मिलीलीटर शुद्ध प्रोटीन डेरिवेटिव (पीपीडी) आपकी त्वचा में इंजेक्ट किया जाता है, जिसका परिणाम 3 दिनों के बाद आता हैं। इसके 48-72 घंटे के बाद डॉक्टर यह देखते है कि, व्यक्ति परीक्षण के लिए कैसी प्रतिक्रिया करता है। व्यक्ति को इंजेक्शन की जगह को पानी या साबुन का इस्तेमाल नहीं करने के लिए कहा जाता है।
• न्यूक्लिक एसिड एम्पलीफिकेशन टेस्ट: डेऑक्सीरिबोन्यूकलिक एसिड (डीएनए) माइकोबैक्टीरियल राइबोसोमल आरएनए पहचान के लिए विशिष्ट होता है। इसकी जाँच थूक लेने के 2 घंटे के भीतर, एनएए की प्रीलोडेड शीशी के साथ मिलाकर की जाती है।
• इंटरफेरॉन-गामा रिलीज एस्से (IGRA): संक्रमित व्यक्ति की सफेद रक्त कोशिकाएं जब एंटीजन के साथ मिलती है, तब वह इंटरफेरॉन गामा को रिलीज करती हैं, जोकि माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्युलोसिस से प्राप्त होता हैं।
• चेस्ट रेडियोग्राफ: चेस्ट एक्स-रे हमें दिल की छाया के पास, कुछ बढ़े हुए लिम्फ नोड्स के साथ सफेद क्षेत्र की तरह फेफड़ों के परेंकाईमा में परिवर्तन दिखाता है। हम इसमें संबद्ध जटिलतायें जैसे, प्ल्युरल एफ्यूजन, न्यूमोथोरेक्स, या फेफड़ो का पतन देख सकते हैं।
• सीटी चेस्ट: यह फेफड़ों के पैरेन्काइमा में, अधिक मिनट परिवर्तन का अध्ययन करने के लिए किया जाता है, जैसे फेफड़ों में केविटी, सफेद क्षेत्र, कैल्सीफिकेशन और लिम्फ नोड्स के साथ छोटा ट्युबरक्युलोमा।
• फेफड़ों की बायोप्सी: वह मामले जिनमें कोई संदेह होता है, तब फेफड़ों की बायोप्सी निश्चित परिणाम दे सकती है।
• सिगरेट के धुएं से बचें: सिगरेट पीना छोड़ें और निष्क्रिय धूम्रपान करने से बचें।
• टीके: बेसिले कैस्टेलेट गुएरिन (बीसीजी) वैक्सीन लगवायें।
• एन-95 मास्क का प्रयोग करें: यह संक्रमित व्यक्ति से एयरोसोल और माइक्रो ड्रॉपलेट को बाहर जाने से रोकता है।
• नियमित रूप से व्यायाम करें: यह आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को बढ़ाने में मदद करता है।
• नियंत्रित डायबिटीज: यह टीबी के विकास के जोखिम की चपेट में आने से रोकता है।
• मादक द्रव्यों के सेवन से बचें: टीबी के विकास के अपने जोखिम को कम करने के लिए दवाएं लेना या ड्रग्स के इस्तेमाल करना छोड़ दें।
सक्रिय मामलों के उपचार के लिए एक निश्चित अवधि तक दवाओं को लेना होता है।
• आइसोनायजिड (लिवर फंक्शन टेस्ट की निगरानी की जानी चाहिए)
• रिफामपिसिन
• एथमबुटोल (रंग को परखने के लिए, आंखों की समय-समय पर जांच की जानी चाहिए)
• पायरज़िनामाइड (व्यक्ति के सीरम यूरिक एसिड की समय-समय पर जांच की आवश्यकता होती है)
• स्ट्रेप्टोमाइसिन
टीबी के इलाज के लिए, चार दवाओं का उपयोग किया जाता है। इसमें आइसोनायजिड, रिफामपिसिन, पायराज़िनामाइड, और एथमबुटोल या स्ट्रेप्टोमाइसिन का उपयोग 2 महीने के लिए किया जाता है। इसके बाद 4 महीने के लिए आइसोनायजिड और रिफामपिसिन का उपयोग किया जाता है।
• उपचार की रेखा का पालन करें: दवाई को बीच में छोड़ने वाले लोगों को प्रतिरोधी टीबी के विकसित होने का खतरा होता है, जो अधिक घातक होती है।
• दूसरों को संक्रमण से बचाने के लिए, बात करते समय, छींकने, खांसने या हंसते समय मुंह ढककर रखें।
• अच्छा वेंटिलेशन: अपने रहने की जगह (कमरे) को हवादार रखें। बैक्टीरिया एक बंद छोटे कमरे में अधिक फैलता है, जहां हवा की आवाजाही की कमी होती है।
• अपने लक्षणों की जांच रखें: इसकी अवधि और गंभीरता।
• अच्छी नींद लें: यदि आपके लक्षण आपको सोने में परेशान कर रहे हैं, तो डॉक्टर से मिलें और इसके बारे में चर्चा करें।
• गर्भावस्था: यदि आप गर्भ धारण करते हैं, तो अपने डॉक्टर से संपर्क करें और गर्भावस्था से संबंधित जोखिम पर चर्चा करें।
• भावनात्मक तनाव और समाज वर्जित से बचें।
• धूम्रपान छोड़ें
• उन स्थानों से बचें, जो भीड़भाड़ वाले हैं जैसे कमरे या काम की जगह में बहुत सारे लोग, ताकि बीमारी को दूसरों में फैलने से रोका जा सके।
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