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यह एक बहु-प्रणालीगत बीमारी है। इसमें ग्रैनुलोमा नामक कोशिकायें शरीर में कहीं भी जमा हो जाती हैं।
यह सबसे अधिक फेफड़ों और लिम्फ नोड्स में होता है। यह आंखों, दिमाग, त्वचा, दिल, लिवर और अन्य अंगों में भी देखा जाता है।
हम हो रहे बदलावों को तीन चरणों बाँट सकते हैं ।
• पहला चरण सूजन की अवस्था होती। इसमें प्रतिरक्षा प्रणाली काम करना शुरू कर देती है। इसमें बी-लिम्फोसाइट्स की संख्या में भी बढ़ोत्तरी होती है।
• दूसरा चरण वह जगह है, जहां सूजी हुयी कोशिकाओं/ऊतक (ग्रैनुलोमा) की छोटी गांठे प्रतिरक्षा प्रतिकिया के जवाब में बनने लगती हैं। ये सारकॉयडोसिस के क्लासिक संकेत हैं ।
• तीसरा चरण और अंतिम चरण ऊतकों और अंगों की चोट (फाइब्रोसिस) है। यह कई बार जानलेवा साबित हो सकता है।
फेफड़ों के मामले में, ब्रोंकोवास्कुलर सीथ में लिम्फेटिक के साथ ग्रैनुलोमा का फैलाव होता है। कुछ मामलों में यह फेफड़ों के इंटरलोकुलर सेप्टा और सबप्ल्युरल क्षेत्र में भी होता है।
कुछ रोगियों में जैसे-जैसे यह रोग एक चरण से दूसरे में प्रगति करता, वैसे-वैसे यह एक ऊतक/अंग से दूसरे में फैलता है। कुछ रोगियों में यह एक ही अंग तक बना रहता है।
कुछ मामलों में यह रोगियों द्वारा अनजान रहता है। इसमें ग्रैनुलोमा अपने आप ठीक हो जाते हैं।
कुछ रोगियों में यह घातक शाबित होता है, और न बदले जा सकने वाले फाइब्रोसिस बदल जाता है।
• पर्यावरण एन्टीजेंस
• जेनेटिक्स
• अज्ञात कारण
• आयु: यह रोग आम तौर पर 20-40 वर्ष की आयु के बीच होता है।
• लिंग: यह पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक होता है।
• जेनेटिक्स: यह कुछ स्थितियों/कारणों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह कॅकेशियन से ज्यादा अफ्रीकन-अमेरिकन में होता है।
• वजन घटना
• थकान होना
• सूजे हुये लिम्फ नोड्स होना
• जोड़ों में दर्द और सूजन होना
• लगातार सूखी खांसी होना
• सांस लेने में तकलीफ होना
• घरघराहट होना
• सीने में दर्द होना
• लाल या लाल-बैंगनी थक्कों के दाने जो आम तौर पर पिंडलियों या टखनों के आसपास देखे जाते हैं। ये छूने में गर्म और मुलायम हो सकते हैं।
• नाक, गालो और कानों पर घाव होना
• त्वचा की जगहें जो गहरे या हल्के रंग के होते हैं
• त्वचा के अंदर नोड्यूल होना, विशेष रूप से खंरोच या टैटू के आसपास
• आँखों में धुंधलापन होना
• आंखों में दर्द होना
• जलन, खुजली या आंखों में सूखापन होना
• त्वचा का लाल पड़ जाना
• रोशनी के प्रति संवेदनशीलता होना
• सीने में दर्द होना
• सांस लेने में तकलीफ (डिस्प्निया) होना
• बेहोशी (सिंकोप) होना
• थकान होना
• दिल की धड़कन अनियमित होना
• दिल की धड़कन तेज होना
• अतिरिक्त तरल पदार्थ (एडीमा) के कारण सूजन होना
• पल्मोनरी हाइपरटेंशन के परिणामस्वरूप फेफड़े की खून को नसों को नुकसान पहुंचता है।
• हार्ट फेलियर एक गंभीर जटिलता है, जोकि सूजन के कारण होती है। इसके परिणामस्वरूप दिल पर दबाव पड़ता है, जिसकी वजह से दिल खून को ठीक से पंप नहीं कर पाता है।
• पल्मोनरी फाइब्रोसिस
• पल्मोनरी एम्बोलिज्म
• एस्परगिलोमास, जो हेमोप्टिसिस के कारण जटिल हो जाता है।
• लंग फंक्शन टेस्टः इसमें स्पाइरोमीटर उपकरणों का उपयोग फेफड़े के कामकाज के आकलन के लिए किया जाता है। यह देखने के लिए किया जाता है कि, फेफड़े कितनी देर तक हवा को अंदर लेकर रोक सकते हैं, और बाहर ले जा सकते हैं। यह चल रहे उपचार के आकलन और रोग की गंभीरता के ग्रेडिंग में सहायक होता है। यह फेफड़ों के फाइब्रोसिस वाले मामलों में, शारीरिक हानि के लक्षण, और कार्बन मोनोऑक्साइड के लिए प्रसार क्षमता को जानने में मदद करता है।
• छाती का रेडियोग्राफ- चेस्ट एक्स-रेः यह हमें फेफड़ों के पैरेन्काइमा, राइट पैराट्रेकियल, और बाइलैटेरल हाइलर क्षेत्र में, क्लासिक नोड्स की ट्रायड माला, नोड्स और रेटिकुलोडोरल नोड्यूल के कैल्सिफिकेशन में परिवर्तन दिखाता है।
• छाती का एचआरसीटी स्कैनः यह फेफड़ों के पैरेन्काइमा जैसे ग्राउंड ग्लास ओपेसिटी, ऊपरी/मध्य फेफड़े में पेरिलिम्फेटिक इरेगुलर नोड्यूलर थिकनिंग, ग्रेनुलोमैटस ब्रोंकियोलाइटिस, सेंट्रलीब्रोकुलर नोड्यूल्स और पल्मोनरी फाइब्रोसिस के कारण स्माल एअरवे डीजीज में, मिनट मे होने वाले परिवर्तन के अध्ययन के लिए किया जाता है। यह मांसपेशियों, दूसरे अंगों, हड्डियों और फैट की बेहतर तस्वीर भी देता है।
• पीईटी सीटीः रोग की ऑकल्ट साइट, बायोप्सी की सही जगह, उपचार की प्रतिक्रिया का आकलन करने और लंबे समय तक लक्षणों वाले रोगियों में सक्रिय इंफ्लामेट्री डीजीज को मापने में मदद करता है।
• गैलियम स्कैनिंगः सक्रिय मामलों में ऊँचा हो जाता है। यह उपचार के मूल्यांकन में सहायक होता है।
• ब्रोंकोएल्वेलर लावेज के साथ ब्रोंकोस्कोपी
• फेफड़ों की बायोप्सीः जब गैर-आक्रामक परीक्षण बेनतीजा होते हैं।
• स्किन बायोप्सी
• कैल्शियम के उच्च स्तर को देखने के लिए खून और पेशाब का परिक्षण किया जाता है।
• कोर्टिकोस्टेरॉयड
• इम्यूनोसप्रेसेंट थेरेपी का उपयोग इंफ्लामेट्री प्रतिक्रिया को कम करने में मदद करता है।
• पर्यावरण एंटीजन से बचें: धूल, मोल्ड, रसायन, जहरीले इनहेलेंट और फेफड़ों के लिए हानिकारक एंटीजन आदि से बचें।
• धूम्रपान से बचें
• अच्छी मात्रा में तरल पदार्थ पीयें
• पूरी नींद लें
• डेयरी उत्पादों, हड्डियों और संतरे सहित डिब्बाबंद साल्मन जैसे अत्यधिक कैल्शियम युक्त खाद्य पदार्थों को लेने से बचें
• बहुत ज्यादा धूप से बचें
• पल्मोनरी रिहैबलिटेशन जैसे चेस्ट फिजियोथेरेपी को मिलाकर, और फ्लटर वाल्व, सांस लेने में मदद करते हैं। यह सांस लेने की तकनीक में मदद करता है, तनाव और मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित मुद्दों से लड़ता है। यह फिटनेस, आहार की देखभाल और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करता है।
• हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन यह त्वचा के घावों, और ब्लड-कैल्शियम के स्तर के ज्यादा होने के मामले में उपयोगी हो सकता है।
• ट्यूमर नेक्रोसिस फैक्टर- अल्फा (टीएनएफ-अल्फा) इनहिबिटर्स। इसका उपयोग गठिया के रोगियों में किया जाता है। यह उन लोगो में भी इस्तेमाल किया जाता है जिनको दूसरे उपचार से कोई राहत नहीं मिलती है।
• लिवर ट्रान्सप्लान्ट: यदि लिवर बीमारी से नुकसान हुआ है।
• स्टेज 1ः 1-2 वर्षों के भीतर 60 प्रतिशत रिसोल्युसन हो जाता है
• स्टेज 2ः 46 प्रतिशत पूर्वानुमान दर दिखाता है
• स्टेज 3ः केवल 12 प्रतिशत पूर्वानुमान दिखाता है
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