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लंबर पंचर एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें सेरेब्रोस्पाइनल फ्लूइड (सीएसएफ) के नमूने को लेने के लिए पीठ के निचले हिस्से में सुई डाली जाती है। इसे सीएसएफ को हटाने के लिए किया जाता है जिससे कि दिमाग में दबाव को कम किया जा सके। इसे रीढ़ की हड्डी में दवा इंजेक्ट करने के लिए भी किया जाता है।
सरल अर्थों में जो काम खून की जाँच शरीर के लिए करती हैं वही काम लंबर पंचर तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) के लिए करता है। इसमेंं तरल पदार्थ का नमूना लेकर उसकी असामान्यता का मूल्यांकन किया जाता है।
सीएसएफ पानी की तरह साफ एक तरल पदार्थ होता है जो दिमाग और रीढ़ की हड्डी के चारों तरफ मौजूद होता है। यह दोनों में लचीलापन प्रदान करके उन्हें चोट से बचाता है। यह अच्छे पदार्थों को रखकर खराब पदार्थों को बाहर निकालता है। यह लगातार इंट्राक्रैनियल प्रेशर बनाए रखता है। इस प्रकार यह दिमाग की स्थिति का आकलन प्रदान करता है।
चूंकि दिमाग और रीढ़ की हड्डी में सीएसएफ मौजूद रहता है, इसलिए सीएसएफ का मूल्यांकन इनकी बीमारियों की पहचाननें में मदद करता है। यह दवाओं, एनिस्थिसिया और कीमोथेरेपी दवाओं को सीधे दिमाग और रीढ़ की हड्डी में पहुँचाता है।
• दिमाग और रीढ़ की स्थिति का परीक्षण करने के लिए सीएसएफ इकट्ठा करना: जैसे
– मैनिन्जाइटिस (दिमाग को ढकने वाली बाहरी परतों की सूजन)
– इंसेफेलाइटिस (दिमाग की सूजन)
– मायलाइटिस (रीढ़ की हड्डी की सूजन)
– ऑटोइम्यून सूजन की स्थितियां जैसे मल्टीपल स्क्लेरोसिस
– सुबारराक्नोइड हेमरेज (दिमाग और रीढ़ की हड्डी की परतों से खून बहना)
– ट्यूमर (लिंफोमा और अन्य कैंसर)
• हाइड्रोसेफलस की पहचान के लिए सीएसएफ दबाव को मापना, जहां इंट्राक्रेनियल दबाव ज्यादा होता है।
• हाइड्रोसेफलस के कुछ मामलों में बढ़ते इंट्राक्रैनियल दबाव को दूर करने के लिए तरल पदार्थ को बाहर निकालना।
• मस्तिष्क को शाँत रखने के लिए दिमाग की सर्जरी के दौरान सीएसएफ दबाव को नियंत्रित करना।
• दवाओं को सीधे सीएसएफ में डालना ताकि यह दिमाग और रीढ़ तक साीधे पहुँच सके, जैसे कि कीमोथेरेपी एजेंट, एंटीबायोटिक और अन्य.
• निचले शरीर में एनिस्थिसिया प्राप्त करने के लिए एनेस्थेटिक एजेंट को रीढ़ की हड्डी में लगाना।
• कंट्रास्ट मीडियम/डाई (मायलोग्राफी) या रेडियोएक्टिव सब्सटैंस (सिस्टर्नोग्राफी) को रीढ़ की हड्डी में डालना ताकि इमेज देखी जा सके ।
यह टेस्ट डॉक्टर द्वारा क्लिनिक या अस्पताल में किया जाते है। दिमाग की स्थिति के आकलन के लिए यह आम तौर पर न्यूरोलॉजिस्ट या न्यूरोसर्जन द्वारा किया जाते है। यह लोग दिमाग और रीढ़ की हड्डी की बीमारियों के विशेषज्ञ होते है।
लंबर पंचर में करीब 30 से 45 मिनट तक का समय लगता है। तरल पदार्थ, एनिस्थिसिया या किसी अन्य दवा देने के लिए हाथ में एक नली डाली जाती है। यह प्रक्रिया एनिस्थिसिया के तहत की जाती है ताकि व्यक्ति कोई परेशानी न हो।
निम्नलिखित कदम क्रम से उठाए जाते हैं:
1. मरीज की पोजिसनिंग (स्थिति): इसमें व्यक्ति को घुटनाों और ठोड़ी को अंदर की तरफ मोड़कर लेटने के लिए कहा जाता है। कभी- कभी व्यक्ति को बैठकर आगे झुकने के लिए कहा जाता है। ये पोजिसनिंग (स्थितियाँ) रीढ़ की हड्डी के बीच की दूरी बढ़ाती हैं, जिससे सुई हड्डी से टकराये बिना रीढ़ की नली में आसानी से पहुँच जाती है।
2. प्रवेश की जगह की तैयारी:
मरीज की पोजिसनिंग के बाद निम्नलिखित चीजें की जाताी है:
रीढ़ और दिमाग में संक्रमण से बचने के लिए पीठ के निचले हिस्से की सफाई एंटीसेप्टिक द्वारा की जाती है।
प्रक्रिया के दौरान दर्द से बचने के लिए सुन्न करने की दवा दी जाती है, जिसको लगाते समय हल्की सी चुभन हो सकती है।
3. रीढ़ की हड्डी की नली में सुई डालना: एनिस्थीसिया के बाद रीढ़ की हड्डियों के तीसरे और चौथे काठ कशेरुकी (लंबर वर्टिब्रा) के बीच खोखली सुई डाली जाती है। यह पसंदीदा जगह होती है, क्योंकि यह रीढ़ की हड्डी को सुई से होने वाले नुकसान से बचाता है।
सुई के अंदर डालने के दौरान व्यक्ति को ज्यादा दर्द महसूस नहीं होता है लेकिन बाहरी परत में हल्की सी चुभन या सनसनी महसूस हो सकती है जिसे ड्यूरा कहा जाता है।
किसी भी स्थिति का पता लगाने के लिए डॉक्टर आमतौर पर 5 से 20 मिलीलीटर सीएसएफ लेता है।
प्रक्रिया के दौरान व्यक्ति का उसी पोजिसन (स्थिति) में पड़ा रहना जरूरी होता है, फिर भी यदि किसी तरह की परेशानी हो तो डॉक्टर को बताएं।
यदि लंबर पंचर किसी अन्य समस्या के लिए किया जा रहा है, तो रीढ़ की हड्डी में सुई डालने के बाद निम्नलिखित चीजों का ध्यान रखना चाहिये।
1. सीएसएफ दबाव को मापें:
दबाव को मापने के लिए व्यक्ति को अपने पैरों को सीधा करने के लिए कहा जाएगा और मीटर से जुड़ी सुई को अंदर डाला जायेगा।
2. दबाव को कम करने के लिए अतिरिक्त सीएसएफ निकालें:
इंट्राक्रैनियल दबाव के बढ़ने या हाइड्रोसेफलस के मामलों में, कैथेटर डालकर सीएसएफ को बाहर निकाला जाता है जिससे दिमाग पर दबाव कम हो सके।
3. दवा या एनिस्थिसिया का इस्तेमाल:
रीढ़ की हड्डी में पहुंचने के बाद एंटीबायोटिक, कीमोथेरेपी या एनिस्थिसिया का इस्तेमाल किया जाता है।
प्रक्रिया के तुरंत बाद, डॉक्टर पंचर की जगह पर दबाव डालकर पट्टी बांध देते हैं। इसक बाद व्यक्ति को लगभग एक घंटे तक बिस्तर पर आराम करने के लिए कहा जाता है। व्यक्ति को कम से कम 24 घंटे तक कोई शारीरिक गतिविधि न करने का निर्देश दिया जाता है। भरपूर मात्रा में तरल पदार्थ पीना अच्छा माना जाता है।
हल्के सिरदर्द या पीठ दर्द के मामले में, व्यक्ति एसीटामिनोफेन जैसी दर्द निवारक ले सकता है। यदि पंचर की जगह से तरल पदार्थ या खून का रिसाव होता है तो व्यक्ति को तुरंत डॉक्टर से परामर्श करना चाहिए।
लंबर पंचर से कुछ दिन पहले, डॉक्टर निम्नलिखित चीजों के बारे में पूँछ सकते हैं:
• इमेजिंग टेस्ट: जैसे सीटी स्कैन या एमआरआई, लंबर पंचर करने की आवश्यकता और उसकी सुरक्षा की जांच करने के लिए।
• दवा का इतिहास: ऐसे मरीजों में टेस्ट के दौरान रक्तस्राव को रोकने के लिए warfarin जैसी दवाओं को लेने से बचने के लिए कहा जाता है।
परीक्षण के दिन निम्नलिखित चीजों का ध्यान रखें:
• परीक्षण से पहले नियमित नाश्ता लें
• डॉक्टर द्वारा बतायी गयी दवाएं लें
• कपड़े बदलें और अस्पताल का गाउन पहनें
• परीक्षण के लिए सहमति पर हस्ताक्षर करें, जिसमें मरीज को जोखिमों और लाभों के बारे में बताया जाता है।
लंबर पंचर आमतौर पर एक सुरक्षित प्रक्रिया है जिसमें केवल कुछ लोगों में ही इसके गंभीर दुष्प्रभाव देखे गये हैं।
प्रक्रिया के बाद सिरदर्द: यह पाया गया है कि लगभग एक तिहाई (32 प्रतिशत) रोगियों में लंबर पंचर के बाद सिरदर्द होता है, जिसे स्पाईनल हेडेक के रूप में भी जाना जाता है। यह सुई घुसने की जगह से सीएसएफ के रिसाव के कारण होता है। सीएफएस रिसाव से सीएसएफ वॉल्यूम में गिरावट आती है, जिससे सिरदर्द होता है। ये सिर दर्द तेज हो सकता है और कुछ घंटों या कुछ दिनों तक रह सकता है।
स्पाईनल हेडेक 18-30 साल के युवा वयस्कों में अधिक आम है
स्पाइनल सिरदर्द की घटनाओं को कम करने के लिए कुछ तरीके बताए जा सकते हैं।
पीठ दर्द या पैर दर्द: व्यक्ति पंचर की जगह के पास पीठ के निचले हिस्से में दर्द महसूस कर सकता है जो कभी-कभी पैरों तक पहुँच जाता है।
रीढ़ की हड्डी में चोट या अनचाहा पंचर शायद ही कभी होता है।
रीढ़ की हड्डी में सुई डालने की जगह से खून बह सकता है।
ब्रेन हर्निएशन लंबर पंचर के बाद हो सकता है, विशेष रूप से तब जब सीएसएफ दबाव में अचानक गिरावट आ जाती है। यह ब्रेन ट्यूमर के मामले में अधिक होता है।
सीएसएफ के ढाँचे और रासायनिक संरचना की जाँच प्रयोगशाला में करके सूक्ष्म जीवों या एंटीबॉडी का पता लगाया जाता है। यह सामान्य और असामान्य सीएसएफ के बीच अंतर करने और बीमारियों की पहचान करने में मदद करती हैं।
डॉक्टर प्रक्रिया के तुरंत बाद संरचना या सीएसएफ किसी भी तरह के बदलाव के बारे में सूचित कर सकते हैं। सीएसएफ की जाँच के परिणाम आने में ४८ घंटे तक का समय लग सकता है, जबकि कुछ परिणाम कुछ घंटों के भीतर आ जाते हैं।
• ढाँचागत संरचना: सामान्य सीएसएफ दिखने में साफ और बेरंग होता है।
असामान्य सीएसएफ कई रंगों में दिखाई दे सकते है जैसे:
गुलाबी: जो खून की उपस्थिति का संकेत दे सकता है। यह सुबारराक्नोइड हिमोरेज की पहचान का सुझाव देता है। सीएसएफ का रंग उड़ना 12 घंटे के भीतर
९० प्रतिशत से अधिक लोगोंमें देखा जाता है ।
बादली या पीले रंग जो एक संक्रमण (संभवतः मैनिन्जाइटिस) का संकेत हो सकता है, उच्च बिलीरुबिन या रक्त जो घटकों में टूटने के बाद पीले रंग को जन्म दे सकता है।
हरा रंग जो बिलीरुबिन या संक्रमण (सीएसएफ में मवाद) की उपस्थिति का संकेत दे सकता है।
घटक | सामान्य सीएसएफ | असामान्य सीएसएफ बढ़े हुए मूल्य | घटा मूल्य |
---|---|---|---|
सीएसएफ दबाव | 60 से 200 मिमी एच2ओ (8 वर्ष से अधिक आयु) और मोटापे से ग्रस्त रोगियों में250 मिमी एच2ओ तक। | 250 मिमी से अधिक एच2ओ- इंट्राक्रैनियल उच्च रक्तचाप | 60 मिमी से कम एच2ओ-इंट्राक्रैनियल हाइपोटेंशन,चोट में देखा गया जिससे सीएसएफ रिसावहुआ। |
प्रोटीन | 18 से 58 मिलीग्राम प्रति डीएल | infections (दिमागी शिक्षा, मस्तिष्क फोड़ा आदि), इंट्राक्रैनियल रक्तस्राव, मल्टीपल स्क्लेरोसिस, गिलेन बर्रए सिंड्रोम, ट्यूमरऔरभड़काऊ स्थितियां, सीएसएफ प्रवाह में रुकावट, अधिक जानें | तेजी से सीएसएफ उत्पादन में देखा जा सकता है |
ग्लूकोज | 45 से 80मिलीग्राम/एलडीएल या रक्त शर्करा के स्तर के बारे में 2/3 | आमतौर पर नहीं सीएसएफ ग्लूकोज ३०० मिलीग्राम/dL से ऊपर नहीं है-अगर ऊपर तो उच्च रक्त शर्करा के हस्ताक्षर | संक्रमण- बैक्टीरियल, या फंगल ट्यूबरकुलर दिमागी भाषा और अन्य। कम रक्त शर्करा |
WBC (सफेद रक्त कोशिकाओं) | 0 से 5 कोशिकाएं/एमएम3 (सभी मोनोन्यूक्लियर डब्ल्यूबीसी) | संक्रमण (दिमागी विज्ञान, मस्तिष्क फोड़ा आदि),ट्यूमर, मल्टीपलस्क्लेरोसिस | ना |
आरबीसी | 0-10 | सीएसएफ में रक्तस्राव का सुझाव देता है या काठ पंचर के कारण आघात | ना |
गामा ग्लोब्यूलिन | 7 से 12 | भड़काऊ स्थितियां जैसे मल्टीपलस्क्लेरोसिस, गिलेन बैरे सिंड्रोम न्यूरोसिफलिस |
विभिन्न प्रयोगशालाओं में अलग-अलग पैरामीटर होते हैं जिनसें परिणाम में थोड़ी भिन्नता हो सकती है।
सीएसएफ में असामान्यतायें विशेष स्थिति का सुझाव दे सकती है:
• सूक्ष्मजीव: सीएसएफ में बैक्टीरिया, वायरस, कवक और अन्य जैसे सूक्ष्म जीवों की उपस्थिति संक्रमण का सुझाव देती है।
1. धुंधला और सूक्ष्म मूल्यांकन: इन सूक्ष्म जीवों का पता डाई पर सीएसएफ लगाने के बाद माइक्रोस्कोप द्वारा किया जाता है।
यदि मैनिन्जाइटिस बैक्टीरिया के कारण होता तब ग्राम स्टेनिंग की जाती है।
यदि मैनिन्जाइटिस का कारण तपेदिक (टीबी) होता है तो एसिड फास्ट बैसिलस (एएफबी) स्टेनिंग किया जाता है।
कवक (क्रिप्टोकोकस) के लिए इंडियाइंक स्टेनिंग किया जाता है।
ग्राम स्टेनिंग मैनिन्जाइटिस के अनुपचारित मामलों के 60-80 प्रतिशत मामलों और आंशिक रूप से इलाज के योग्य केवल 40-60 प्रतिशत मामलों की पहचान कर सकता है।
एसिड फास्ट स्टेनिंग शुरुआती चरण में केवल ३७ प्रतिशत मामलों की पहचान में मदद कर सकता है । यदि चार स्मीयर बनाए जाएं तो संवेदनशीलता को 87 तक सुधारा जा सकता है . सीएसएफ की तलछट का परीक्षण करके संवेदनशीलता भी बढ़ाई जा सकती है .
2. कल्चर: मैनिन्जाइटिस के मामलों में रोगाणुओं का पता लगाने के लिए यह एक खरा मानक परीक्षण है।
यहां सीएसएफ का नमूना सूक्ष्म जीवों के लिए विशिष्ट पोषक तत्व माध्यम पर रखा जाता है और समय की अवधि के साथ इसे बढ़ने दिया जाता है।
कल्चर के लिए कम से कम 15 एमएल सीएसएफ निकाला जाना है।
संवेदनशीलता: कल्चर पहले नमूने के 56 प्रतिशत मामलोंमें माइक्रोब का पता लगाने में सक्षम होता है। यदि चार अलग-अलग नमूने को कल्चर में लगाया जाता हैं तो पता लगाने की दर को 83 तक सुधारा जा सकता है।
समय:
एंटीबायोटिक उपचार शुरूकरने से पहले सीएसएफ कल्चर किया जाना चाहिए क्योंकि इससे परीक्षण की संवेदनशीलता कम हो सकती है।
अवधि: परिक्षण परिणाम दिखाने के लिए 6 सप्ताह का समय लेता है। कल्चर सकारात्मक पहचान के लिए छह सप्ताह तक समय लेता है ।
3. पॉलीमरेज चेन रिएक्शन (पीसीआर): सीएसएफ में रोगाणुओं का पता लगाने के लिए पीसीआर सबसे संवेदनशील रैपिड टेस्ट है। कल्चर कि जगह पर इसका मुख्य लाभ यह है कि यह बहुत तेजी से होता है और इसमें सीएसएफ की कम मात्रा की आवश्यकता होती है।
पीसीआर कई वायरस के लिए लगभग 95 से 100 प्रतिशत की संवेदनशीलता के साथ वायरल मैनिन्जाइटिस का पता लगाने में विशेष रूप से उपयोगी है।
तपेदिक (टीबी) मैनिन्जाइटिस के लिए पीसीआर की संवेदनशीलता ५४ से १०० प्रतिशतहै, और AFB स्टेनिंग तथा कल्चर की जगह अधिक लाभकारी हो सकता है ।
हालांकि पीसीआर महंगी है, लेकिन सारे परीक्षण की आवश्यकता को कम करके इसे सस्ता किया जा सकता है।
• कैंसर कोशिकाएं: सीएसएफ में ट्यूमर कोशिकाओं या अपरिपक्व (इमैच्यूर) रक्त कोशिकाओं की उपस्थिति कुछ प्रकार के कैंसर का संकेत दे सकती है।
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