सामान्य चिंता विकार (जीएडी) किसी चीज के होने की परेशानी या घबराहट है जो हो रही है या होने वाली है। सभी को अपने जीवनकाल में किसी भी चीज के बारे में ज्यादा सोचने से यह परेशानी होती ही है जैसे पैसा, काम, प्रदर्शन, स्वास्थ्य इत्यादि। चिंता का यह सामयिक और सहन करने की भावना को जीवन का सामान्य हिस्सा माना जाता है। जब यह चिंता बार-बार या अधिक होती है जिससे बहुत सारी समस्यायें उत्पन्न हो जाती है या जिससे दिनचर्या पर असर पड़ता है, तब इसे असामान्य माना जाता है और यही सामान्य चिंता विकार (जीएडी) का आधार बनती है।
डीएसएम-5 ने सामान्य चिंता विकार (जीएडी) को अत्यधिक परेशानी और चिंता (आशंका) के रूप में परिभाषित किया है जोकि अधिक दिनों तक रहती है, जिसके 3 लक्षण कम से कम 6 महीने तक रहते हैं।
यह लक्षण निम्न हो सकते है:
• परेशानी या झटके महसूस करना।
• जल्दी थक जाना।
• ध्यान लगाने में परेशानी होना या कुछ समक्ष न आना।
• चिड़चिड़ापन होना।
• मांशपेशियों में खिंचाव आना
• नींद में परेशानी होना (सोने में या सोते रहने में परेशानी, बेचैनी या कम नींद)
सामान्य चिंता विकार (जीएडी) से ग्रसित व्यक्ति छोटी-छोटी बातों में जरूरत से ज्यादा परेशान हो जाते हैं। इस तरह, सामान्य चिंता विकार (जीएडी) सभी के जीवन में होने वाली अन्य परेशानी से अलग होती है, जोकि सिर्फ विशेष प्रकार के तनाव में देखी जाती है। यह व्यक्ति को कुछ समय के लिए ही प्रभावित करती है।
ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि भारत में 100 में से 6 या लगभग 6 प्रतिशत लोग चिंता की समस्या (जीएडी) से ग्रसित हैं। शहर के लोगों में इसे और अधिक पाया गया है।
सामान्य चिंता विकार (जीएडी) की समस्या समय के साथ धीरे-धीरे पैदा होती है, जोकि प्राय: किशोरावस्था या युवावस्था से शुरु होती है।
लक्षण:
पश्चिमी लोगो के मुकाबले भारतीय और एशियायी मूल के लोगों में मानसिक लक्षणों की तुलना में शारीरिक लक्षण अधिक दिखायी दिये हैं।
शारीरिक लक्षण: ये शारीरिक लक्षण या अनुभव ऐसे होते हैं जिनको व्यक्ति बिना किसी शारीरिक बीमारी या रोग के बावजूद महसूस करता है। जो भी व्यक्ति इन लक्षणों को महसूस कर रहा होता है, वह इसके दुष्परिणामों और बीमारी के बारे में लगातार सोचता रहता है।
शारीरिक लक्षण निम्न प्रकार के हो सकते हैं:
• दर्द: यह सबसे सामान्य शारीरिक लक्षण है। इसमें व्यक्ति को सिरदर्द, पेट में दर्द, गर्दन में दर्द, पीठ दर्द या लगातार दर्द हो सकता है।
• माँशपेशियों में दर्द या माँशपेशियो का खिंचाव।
• हर समय थका महसूस करना या जल्दी थक जाना।
• जी मिचलाना।
• दस्त या बडी आंत की समस्या।
• चक्कर आना या सिर में हल्कापन महसूस करना।
• जरूरत से ज्यादा पसीना आना और साँस लेने में परेशानी महसूस करना।
• काँपना या क्षटके से हिलना
• पेशाब के लिए बार-बार जाना
मानसिक लक्षण निम्न प्रकार के हो सकते हैं:
• कई चीजों के बारे में लगातार चिंता या परेशानी जैसे दैनिक गतिविधि या कार्य।
• किसी चीज के प्रभाव और महत्व के बारे में जरूरत से ज्यादा सोचना।
• सरल से सरल चीजों के खराब परिणाम के बारे में सोचना।
• बिना वजह के खतरों और परिणाम के बारे में तैयारी करना या योजना बनाना।
• फैसले लेने मे परेशानी और गलत फैसले लेने का डर।
• यह जानते हुये की वे चिंता ज्यादा कर रहे हैं, इसके बावजूद उससे बाहर न निकल पाना।
• आराम करने में, नींद लेने में या नींद बनाये रखने में परेशानी।
• कम नींद के कारण थकान महसूस करना।
• बेचैनी महसूस करना, आने वाली घटना के बारे घबराना या उत्तेजित महसूस करना।
• ध्यान लगाने में परेशानी होना या कुछ समक्ष न आना।
चिंता या परेशानी के कारण:
वयस्कों में चिंता की समस्या दिन-प्रतिदिन की गतिविधि, किसी घटना या अन्य जरुरी चीजों के बारे में हो सकती है जैसै:
• पैसा या घर की आर्थिक स्थिति।
• काम का प्रदर्शन या नौकरी की चिंता।
• खुद की या रिश्तेदारों के स्वास्थ्य की चिंता।
• बच्चों के स्वास्थ्य और सुरक्षा की चिंता।
• समय पर या देर से पहुँचने की चिंता।
• घरेलू काम या अन्या कार्यों की चिंता।
जब सामान्य चिंता विकार (जीएडी) बच्चों में होती है, तब आमतौर पर उनमें निम्न समस्याये होती है।
• खेलों में या पढ़ाई में बेहतर करने की चिंता।
• खुद को साबित करने या उम्मीदों पर खरा न उतरने की चिंता।
• आत्मविश्वास की कमी।
• काम को अच्छा करने की कोशिश करना या उसे दुबारा करना।
• लगातार सिरदर्द और पेटदर्द
• स्कूल और समारोह से दूर रहना।
• भूकंप, बाढ़, भीड़ और युद्ध जैसी घटनाओं के बारे में चिंता करना।
ये लक्षण समय के साथ अच्छे या खराब हो सकते हैं। शारीरिक और और मानसिक तनाव के साथ यह लक्षण और खराब हो जाते हैं, जैसा कि शरीर से जुड़ी बीमारियों, आने वाली परिक्षाओं, पारिवारिक या रिश्तों से संबंधित मुद्दों में देखा गया है। चिंता के कारक समय के साथ-साथ बदलते रहते हैं।
अभी तक इसकी सटीक रचना और कारण का पता नहीं चल पाया है। हाँलांकि ऐसे कई खतरनाक कारक पाये गये हैं जो व्यक्ति में सामान्य चिंता विकार (जीएडी) को बढ़ाने में मदद करते हैं।
आनुवाँशिक (जेनेटिक): ऐसा माना जाता है कि सामान्य चिंता विकार (जीएडी) परिवारिक होती है, लेकिन सभी सदस्यों में यह समस्या विकसित नहीं होती है।
दिमाग की संरचना और कामकाज: अध्ययनों से यह पता चला है कि दिमाग के कुछ हिस्से तथा रसायन (केमिकल), तनाव और चिंता को पैदा करने तथा उसके काम करने से जुड़े होते हैं। यह कुछ लोगों में सामान्य चिंता विकार (जीएडी) को समक्षनें में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
व्यक्तित्व (पर्सनैलीटी): नकारात्मक विचार, आत्मविश्वास में कमी तथा डरपोक स्वभाव के व्यक्तियों में चिंता की समस्या (जीएडी) होने का खतरा काफी अधिक होता है।
अनुभव और तनाव: व्यक्तिगत जीवन के अनुभव, महत्वपूर्ण घटना या लगातार तनाव या चिंता कुछ लोगों में चिंता की समस्या जीएडी के विकसित होने में सहायक हो सकती है। यह घटनायें बचपन या कम उम्र में घटने वाले तनावपूर्ण शारीरिक और मानसिक अनुभव हो सकते है जैसे किसी की म्रत्यु, परिवार में कलह, शोषण या गंभीर बीमारी।
सामान्य चिंता विकार (जीएडी) लक्षणों की गंभीरता के आधार पर व्यक्ति के दिन-प्रतिदिन के जीवन को प्रभावित कर सकता है। यह व्यक्ति की कार्य करने की क्षमता को स्कूल या काम की जगह पर प्रभावित कर सकता है जैसे:
• इससे प्रभावित लोगों को दिये गये कार्य या नौकरी पर ध्यान करना मुश्किल हो जाता है।
• यह उनके तुरंत फैसले लेने की क्षमता को प्रभावित कर सकता है।
• दिये गये कार्यो या बुनियादी गतिविधियों के गलत परिणाम को सोचने और योजना बनाने में एक व्यक्ति काफी समय और ऊर्जा लगा सकता है।
• यह व्यक्ति को साथियों द्वारा दिये गये साघनों और मदद के उपयोग को बेकार तथा खुद को अलग-थलग महसूस करा सकता है।
यह व्यक्ति के पारिवारिक तथा सामाजिक जीवन को प्रभावित कर सकता है जिससे उनके जीवन में और दुख आ जाते हैं जिस कारण तनाव और बढ़ जाता है।
• किसी को खोने और रिश्तों के बारे में लगातार डर।
• बेचैनी और आत्मविश्वास की कमी रिश्तों को नुकसान पहुँचा सकता है और तनाव बढ़ा सकता है।
• सामाजिक मेलजोल से दूरी और लोगों से मिलने का डर व्यक्ति के सामाजिक जीवन और रिश्तों पर असर डाल सकता है।
यह समस्याये व्यक्ति के पैसे कमाने की क्षमता, आर्थिक और निजी जीवन पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से असर डाल सकती हैं जिससे तनाव और बढ़ जाता है जोकि लक्षणों को और बेकार कर देता है।
सामान्य चिंता विकार (जीएडी) के साथ के साथ कभी-कभी दूसरी मानसिक बीमारियों को होते हुये देखा गया है जैसे कि:
• अचानक डर जाना।
• किसी चीज के बारे में सक करना।
• किसी चीज को बार-बार करने की आदत से उत्पन्न बेचैनी, डर और चिंता।
• किसी दुर्घटना के होने के बाद रहने वाला तनाव।
• निराशा/ उदासी।
• शराब या नसे की आदत से होने वाली परेशानियाँ।
• आत्महत्या के बारे में सोचना।
ये समस्याये सामान्य चिंता विकार (जीएडी) के साथ या उसके बाद हो सकती है जिससे पहचान और इलाज में मुश्किल आ सकती है।
रोग संबंधी जानकारी: डाक्टर इसकी शुरूआत लक्षणों की पूरी जानकारी लेने के साथ करता है। डाक्टर आपसे नसे की लत या दवाईयों के सेवन के बारे में जानना चाहेगा।
शारीरिक परिक्षण: डाक्टर शरीर में बीमारी के संकेत को जानने की कोशिश करेगा।
जाँचें: चूंकि भारत में मरीजों में शारीरिक लक्षण ज्यादा पाये जाते हैं, इसलिए डाक्टर कुछ प्रयोगशाला की जाँचो (लैब टेस्ट) या अल्ट्रासाउन्ड/ एक्सरे आदि कराने के लिए कहेगा, जिससे कि शरीर में होने वाली समस्याओं का पता चल सके।
विशेषज्ञ की सलाह: जैसा कि भारत में मरीज सबसे पहले एक सामान्य डाक्टर के पास जाते है, सामान्य चिंता विकार (जीएडी) का संदेह होने पर वह आपको मनोचिकित्सक (सकाइअट्रस्ट) या मनोविज्ञानी (साईकोलोजिस्ट) के पास भेज सकता है।
मनोचिकित्सक (सकाइअट्रस्ट): मनोचिकित्सक (सकाइअट्रस्ट) आपकी समस्या की पूरी जानकारी लेगा और आपकी समस्या को समक्षने तथा उसकी पहचान निश्चित करने के लिए आपसे कुछ सवाल पूँछेगा। Diagnostic and Statistical Manual of Mental Disorders (DSM-5) के मानदंड के आधार पर वह आपकी समस्या को सामान्य चिंता विकार (जीएडी) के रूप में दिखायेगा।
सामान्य चिंता विकार (जीएडी) के इलाज का फैसला लक्षणों की गंभीरता तथा जीवन पर उसके प्रभाव के आधार पर किया जाता है। सामान्य चिंता विकार (जीएडी) के इलाज के कई सारे विकल्प उपलब्ध हैं जिनमें मनोचिकित्सा (साईकोथेरेपी) और दवाईयां प्रमुख विकल्प माने जाते हैं, जिसको अलग-अलग या साथ में इस्तेमाल किया जा सकता है।
1. मनोचिकित्सा (साईकोथेरेपी) या टाक थेरेपी: मनोचिकित्सा (साईकोथेरेपी) या मनोवैज्ञानिक (साईकोलोजिकल) परामर्श को सामान्य चिंता विकार (जीएडी) के इलाज में उपयोगी माना जाता है। एक विशेष प्रकार की मनोवैज्ञानिक (साईकोलोजिकल) परामर्श जिसे संज्ञानात्मक व्यवहारवादी उपचार (कोग्नाईटिव बिहेवियरल थेरेपी) कहा जाता है, इन मरीजों में इस्तेमाल की जाती है। यहाँ पर मनोविज्ञानी (साईकोलोजिस्ट) या डाक्टर व्यक्ति की चिंताओं को सुनता है और इसके पीछे के मनोविज्ञान (साईकोलोजी) को समक्षने की कोशिश करता है। डाकटर मरीज को सोचने, समक्षने और परिस्थितियों पर प्रतिक्रिया के नये तरीकों को सिखाता है। डाकटर मरीज की चिंता को कम करने की कोशिश करता है, और कोई काम करते हुये खुद में आत्मविश्नास को पैदा करने के लिए प्रेरित करता है।
2. दवाईयाँ: सामान्य चिंता विकार (जीएडी) के इलाज की कई सारी दवाईयाँ उपलब्ध हैं, जोकि काफी प्रभावकारी हैं। कुछ लोगों में केवल एक विशेष प्रकार की दवाई लेने से अच्छा प्रभाव दिखता है, इसलिए उनको अच्छे विकल्प के बारे में डाक्टर से सलाह लेनी चाहिये।
• सेलेक्टिव सेरोटोनिन रीपटेक इनहिबिटर (SSRIs) और सेरोटोनिन-नॉरपाइनफ्राइन रीप्टेक इनहिबिटर (SNRI): इन्हें आमतौर पर तनाव के इलाज के लिए इस्तेमाल किया जाता है। हाँलांकि ये सामान्य चिंता विकार (जीएडी) के इलाज में भी उपयोगी होती हैं, और डाक्टरों द्वारा दी जाने वाली पहली दवाई होती है। यह दवाईयाँ डुलोक्सेटीन, एस्सिटालोप्राम या पैरॉक्सिटाइन इत्यादि हो सकती हैं। इसका असर दिखनें में कई दिन या हफ्ते लग सकते हैं। इन दवाईयो के दुष्परिणाम जी मिचलाना, भूख न लगना, थकावट या नींद की समस्या इत्यादि हो सकते हैं।
• अन्य सेरोटोनर्जिक दवाईयाँ: अन्य सेरोटोनर्जिक दवाईयाँ जैसे बुसपिरोन का इस्तेमाल सामान्य चिंता विकार (जीएडी) में किया जा सकता है। इसके असर को भी दिखनें में कई दिन या हफ्ते लग सकते हैं।
• बेन्ज़ोदिअज़ेपिनेस: यह नींद की दवाईयाँ होती है जिनकों गंभीर लक्षणों के इलाज के लिये थोड़े समय के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह चिंता को कम करनें में काफी सहायक होती हैं, लेकिन इनके ऊपर निर्भर होने तथा इनको सहन करने की क्षमता के विकसित होने के डर से इन्हें लम्बे समय तक इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है।
इलाज के यह दोनों विकल्प लक्षणों को कम करने और उसमें महत्वपूर्ण बदलाव लाने में कुछ समय लेते हैं। व्यक्ति को इलाज बीच में नहीं छोड़ना चाहिये और डाक्टर के साथ मिलकर आराम से सही फैसला लेना चाहिये।
मनोचिकित्सा (साईकोथेरेपी) और दवाईयों के अलावा इलाज के कई सारे विकल्प उपलब्ध हैं जिनसे लोगों को फायदा हुआ है।
3. जीवनशैली में बदलाव और आराम करने के तरीके: इलाज के विकल्पों जैसे जीवनशैली में बदलाव और आराम करने के तरीकों जैसे योग, ध्यान (मेडिटेसन) इत्यादि को जीवन में अपनाने से, तनाव को कम और लक्षणों को घटाने की क्षमता में बढ़ोत्तरी की जा सकती है।
जीवनेशैली मे बदलाव जो मदद कर सकते है वह इस प्रकार हैं:
व्यायाम: दिन भर दौड़-भाग करने से और जीनशैली में व्यायाम को अपनाने से तनाव को कम करने में मदद मिलती है। व्यायम तनाव को कम करने का एक बेहतर तरीका है जोकि मन को अच्छा रखता है, आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी करता है और चिंता तथा तनाव को कम करता है। शुरूआत में सरल और कम समय वाले व्यायाम करने चाहिये जिसको धीरे-धीरे बढ़ाया जा सकता है। कई सारी क्रियाओं जैसे दौड़ना, तैरना, साईकिल चलाना, नाचना, वजन उठाना आदि को किया जा सकता है।
नशीले पदार्थों के सेवन को छोड़ना: ऐसा पाया गया है कि शराब (एल्कोहल) और ड्रग्स के इस्तेमाल से तनाव में बढ़ोत्तरी होती है जिससे दूसरी समस्याये भी उत्पन्न हो जाती है।
बीड़ी या सिगरेट छोड़ना और काफी पीना कम करना या छोड़ देना: निकोटीन और कैफीन दोनों ऐसे पदार्थ हैं जिससे चिंता और घबराहट बढ़ती है।
अच्छी नींद लेना: अच्छी और पर्याप्त मात्रा में नींद लेने से तनाव में कमी आती है। नींद से संबंधित समस्या के लिए डाक्टर से सलाह लें।
अच्छा खाना: अच्छे खाने और पर्याप्त मात्रा में पानी पाने से शरीर में तनाव को कम करने में मदद मिलती है।
आराम करने के तरीके: आराम करने के तरीकों को अपनाने से शरीर और दिमाग को आराम मिलता है। विभिन्न प्रकार के आराम करने के तरीकों जैसे योग, ध्यान (मेडिटेसन) या देखने की तकनीक को शरीर की क्षमता के आधार पर इस्तेमाल किया जा सकता है।
योग में साँस पर नियंत्रण (प्रानायाम), शरीरिक क्रियायें (आसन:) और ध्यान (मेडिटेसन) आदि आते हैं। ऐसा माना जाता है कि योग हाइपोथैलेमिक-पिट्यूटरी-अधिवृक्क (एचपीए) अक्ष की क्रिया को कम करके तनाव और चिंता में फायदा पहुँचाता है, जोकि तनाव के दौरान तेज हो जाती है। इस प्रकार से यह ह्रदयगति (हार्ट रेट), रक्तचाप (ब्लड प्रेशर) और सांस को सामान्य करता है। शोध से यह साबित हो चुका है कि योग करने से ह्रदयगति (हार्ट रेट) में बेहतरी आती है, जिससे तनाव कम होता है। अध्ययनों से यह पता चला है कि जो लोग प्रतिदिन ट्रान्सेंडैंटल ध्यान करते हैं उनके दिमाग के रसायनों में परिवर्तन होते हैं जिनसे तनाव में कमी तथा स्वास्थ्य में बढ़ोत्तरी होती है। वाहिया इट अल (Vahia et al) नें पाया है कि सामान्य चिंता विकार (जीएडी) के इलाज के लिए ध्यान (मेडिटेसन) उतना ही प्रभावकारी है जितना कि इमिप्रामाइन (imipramine) और क्लोरडाएज़पोक्साइड (chlordiazepoxide) दवाईयाँ, जिसके कोई दुष्परिणाम नहीं होते हैं।
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