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एंडोस्कोपी एक ऐसी तकनीक है, जिसके द्वारा डॉक्टर शरीर के आंतरिक हिस्सों को एंडोस्कोप नामक उपकरण पर लगे कैमरे के माध्यम से देखते हैं।
ईआरसीपी का मतलब एंडोस्कोपिक रेट्रोग्रेड कोलेन्जियोपैन्क्रीटोग्राफी होता है, जो कि एक परिक्षण है। यह पित्त (बाईल) और अग्नाशय (पैंक्रिअटिक) नलिकाओं को देखने के लिए एंडोस्कोप, रेडियो ओपेक डाइ/कोंट्रास्ट, और एक्स-रे का उपयोग करता है। ये नलिकायें पित्त और अग्नाशय के तरल को छोटी आंत तक ले जाती है।
इस तकनीक के विभिन्न हिस्सों में कई प्रकार के उपकरणों और विधियों का उपयोग होता है, जो इस प्रकार हैं:
एंडोस्कोप: इसका प्रयोग छोटी आंत के शुरुआती हिस्से में पित्त/ अग्नाशय की नलियों के शिरे का पता लगाने और आंतों के अंदर देखने के लिए किया जाता है।
रेडियो ओपेक डाई/कोन्ट्रास्ट: को नलिकाओं की बनावट और असामान्यता को देखने के लिए शिरे के माध्यम से पित्त (बाईल) और (पैंक्रिअटिक) नलिकाओं में इंजेक्ट किया जाता है।
एक्सरे मशीन और फिल्में: एक्स-रे द्वारा पित्त और अग्नाशय नलिकाओं की छवि (इमेज) ली जाती है। इसके बाद इसे फिल्मों पर डाला जाता है या डॉक्टर द्वारा स्क्रीन पर देखा जाता है ।
ईआरसीपी पित्त या अग्नाशय की नली की किसी भी असामान्यता को देखने, पहचान करने और इलाज करने के लिए किया जाता है। यह तब किया जाता है जब डॉक्टर को पित्त की नली में सिकुड़न या रुकावट का संदेह होता हैं। या तब जब वे इसका कारण जानने या इलाज करने की कोशिश करते हैं।
• सबसे आम कारण पित्त में पत्थर होता है जो पित्त की नली में रूकावट पैदा करता है
• संक्रमण
• अक्यूट पैन्क्रीटाईटिस
• क्रोनिक पैन्क्रीटाईटिस
• आपके पित्त या अग्नाशय की नलिकाओं में आघात या सर्जिकल जटिलताएं
• पित्त की नली का कैंसर या ट्यूमर
• अग्न्याशय का कैंसर या ट्यूमर
यदि पित्त की नली में पत्थर हो जाते हैं, तो डॉक्टर इसे हटाने के लिए एक प्रक्रिया करते हैं। वह रुकी हुयी या सिकुड़ी हुयी नलिकाओं को खोलने के लिए उसमें स्टेंट लगा सकते है। एैसे मामले जिनमें डॉक्टर को ट्यूमर का शक होता है, तो वह माइक्रोस्कोप (हिस्टोपैथोलॉजी) में देखने के लिए ऊतक का एक नमूना ले सकते हैं।
इस प्रकार, ईआरसीपी समस्या का कारण पता लगाने में तथा इलाज करने में मदद करता है। नतीजतन, ईआरसीपी ने पित्त की नली और अग्नाशय की बीमारी वाले अधिकांश रोगियों में सर्जरी की जगह ले ली है।
आम तौर पर, ईआरसीपी करने से पहले व्यक्ति को खून की जाँच तथा नाॅनइन्वेजिव (noninvasive) इमेजिंग परीक्षण कराने पड़ते है जैसे अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन या एमआरआई, जिससे की बाइल डक्ट और लिवर की स्थिति और समस्याओं का पता चल सके। डॉक्टर खून की थक्का जमाने की क्षमता, फेफड़ों और दिल की स्थिति का पता लगाने के लिए कुछ और परीक्षणों के लिए कह सकते हैं।
आपके डॉक्टर आपको इस बारे में सटीक निर्देश देगे कि कैसे तैयार हुआ जाए, जिसमें निम्नलिखित शामिल हैं:
चिकित्सा और दवा इतिहास: डॉक्टर सभी चिकित्सा स्थितियों और एलर्जी के बारे में एक विस्तृत इतिहास (उदाहरण के लिए: ईआरसीपी में उपयोग की जाने वाली कोन्ट्रास्ट एलर्जी) पर चर्चा करेंगे। व्यक्ति को सभी दवाओं, विटामिन और सप्लीमेंट के बारे में डॉक्टर को सूचित करना चाहिए। जिन दवाओं पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए, वे इस प्रकार हैं-
• एस्पिरिन या एस्पिरिन मिली हुयी दवाएं
• खून पतला करने की दवाई जैसे वारफारिन (warfarin), हेपरिन (heparin)
• गठिया की दवाएं
• डायबिटीज की दवाएं (इंसुलिन और गोलियां)
• बीपी की दवाएं
• NSAIDs दर्दनाशक- ibuprofen और naproxen
डॉक्टर ईआरसीपी की तैयारी करने के लिए कौन सी दवा रोकें या बदलें, इसकी बारे में जानकारी देंगे। वह उन दवाओं को अस्थायी रूप से रोकने के लिए कह सकते है जो खून के थक्के के जमने को प्रभावित करती हैं, या ईआरसीपी के दौरान दी गयी शामक दवाओ (सिडेटिव) को प्रभावित करती हैं।
मधुमेह: यदि कोई व्यक्ति मधुमेह (डायबिटीज) से ग्रस्त है, तो ईआरसीपी करने से पहले डायबिटीज की खाली पेट की खुराक में परिवर्तन किए जाएंगे।
गर्भावस्था: यदि आप गर्भवती हैं, तो बच्चा होने तक ईआरपीपी को टालने पर विचार किया जाना चाहिए। यदि प्रक्रिया आवश्यक या जरुरी है तो एक्स-रे से भ्रूण की रक्षा करने लिए ईआरसीपी प्रक्रिया में परिवर्तन किया जाना चाहिये। शोध में यह पाया गया है कि गर्भावस्था के दौरान ईआरसीपी आम तौर पर सुरक्षित होता है।
खाली पेट: व्यक्ति को ईआरसीपी करने के 8 घंटे से पहले खाने-पीने, धूम्रपान, तथा गोंद का सेवन न करने लिए कहा जाता है। यह पेट को खाली रखने के लिए किया जाता है, जिससे की पेट ठीक तरीके से देखा जा सके, और प्रक्रिया के दौरान उल्टी की संभावना को कम किया जा सके।
ईआरसीपी के बाद ड्राइव न करने की सलाह: शामक या संज्ञाहरण (सिडेटिव/ एनिस्थीसिया) के लंबे समय तक प्रभाव के कारण एक व्यक्ति को 24 घंटे तक ड्राइव न करने की सलाह दी जाती है। इस दौरान व्यक्ति में फैसले लेने की क्षमता और सजगता की भावना बाधित रहती है। इस प्रकार, जाँच के बाद व्यक्ति को घर जाने के लिए किसी की मदद लेनी चाहिए।
ईआरसीपी अस्पताल में या आउट पेशेंट सेंटर में डॉक्टर द्वारा किया जाता है, जो ईआरसीपी करने के लिए प्रशिक्षित होते है।
सेडेशन: व्यक्ति को शामक (सिडेटिव) और अन्य दवाएं देने के लिए उसकी हाँथ की नसों में सुई लगाई लगायी जाती है। सिडेटिव को आम तौर पर शरीर के अंगों को आराम और दर्द को रोकने के लिए अन्य दवाओं के साथ मिलाकर दिया जाता है। इस दवा को देने के बाद व्यक्ति जागता रहता है, लेकिन उसे प्रक्रिया का एहसास नहीं होता है। कुछ जटिल मामलों में प्रक्रिया के दौरान नींद नाले के लिये संज्ञाहरण (एनिस्थीसिया) दिया जाता है।
व्यक्ति को गरारे करने के लिए एक तरल संवेदनाहारी (एनिस्थीसिक) दिया जाएगा, तथा उसके गले के पीछे स्प्रे लगाया जाएगा जिससे कि एंडोस्कोप प्रक्रिया के दौरान गला सुन्न हो सके और गैगिंग न हो पाये।
सुरक्षा कारणों से, व्यक्ति को चश्मा या कॉन्टैक्ट लेंस, और डेन्चर हटाने के लिए कहा जाता है।
प्रक्रिया के दौरान व्यक्ति की क्षमता का आकलन करने और प्रक्रिया के दौरान होने वाली जटिलताओं पर नियंत्रण रखने के लिए, उसके संकेतों पर निगरानी रखी जाती है।
प्रक्रिया:
• व्यक्ति परिक्षण के दौरान एक विशेष मेज पर अपने बाईं ओर या पेट के बल लेटता है। दांतों और एंडोस्कोप को नुकसान से बचाने के लिए दांतों के बीच प्लास्टिक का माउथ गार्ड रखा जाता है।
• बहुत से लोगों को एंडोस्कोप के गले के नीचे जाने से परेशानी होती है, लेकिन शामक और दवाओं की मदद से ज्यादातर लोग अच्छी तरह से प्रक्रिया बर्दाश्त करते हैं। कई लोग परिक्षण के दौरान सो जाते हैं, जबकि अन्य आराम से बैठे होते है और उन्हें परीक्षण की जानकारी नहीं होती है।
• डॉक्टर रोगी के मुंह में एंडोस्कोप डालकर उसे निगलने के लिए कहेंगे जिससे एंडोस्कोप मुंह में आसानी से जा सके। मुंह से एंडोस्कोप डालने के बाद, घेघा, पेट और डुओडेनम को खोलने के लिए हवा धीर से अंदर डाली जाती है ताकि इन संरचनाओं को ठीक तरह से देखा जा सके।
• एंडोस्कोप पर लगा एक छोटा कैमरा संरचनाओं का पता लगाने के लिए मॉनिटर को वीडियो भेजता है।
• डुओडेनम के भीतर देखे गए पैपिला नामक संरचना पर पित्त (बाईल) और अग्नाशय (पैंक्रिआस) की नलिकाओं के दिखने के बाद, डॉक्टर नलिकाओं में एंडोस्कोप के माध्यम से कैथेटर नामक ट्यूब डालते है।
• एक विशेष डाई जो एक्स-रे की मदद से देखा जा सकती है, नलिकाओं में डाला जाती है ताकि उन्हें मॉनिटर पर एक्स-रे के माध्यम से देखा जा सके।
• रुकी हुयी या सिकुड़ी हुयी नलिकाएं– इसमें डॉक्टर सिकुड़ी हुयी नली खोल देते है। वह सिकुड़न को हटाने के लिए नली के अंदर स्टेंट (तार जाल या प्लास्टिक ट्यूब) डालते है।
• पित्त (बाइल) रिसाव: पित्त (बाइल) के रिसाव को रोकने के लिए स्टेंट डालते है, जो सर्जरी के बाद हो सकता है।
• पत्थर: पत्थर अपने आप ही टूटकर निकल जाते हैं। वह पत्थर को हटाने में सहायता करने के लिए शिरे या पैपिली को चौड़ा कर सकते है।
• ट्यूमर – बायोप्सी करते हैं, या नलिकाओं में ट्यूमर को हटाने की कोशिश करते हैं। प्रक्रिया में आमतौर पर 1 से 2 घंटे के बीच समय लगता है।
ईआरसीपी के बाद, व्यक्ति को तब तक निगरानी में रखा जाता है जब तक कि बेहोशी से बाहर नहीं आ जाता। दवाओं के प्रभाव से आमतौर पर लोगों को थकान महसूस होती है। उसे ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई होती है। इसलिए आमतौर यह पर सलाह दी जाती है कि वह उस दिन काम पर न जायें तथा ड्राइव न करें।
प्रक्रिया के बाद सबसे आम समस्या, परीक्षण के दौरान इस्तेमाल की गई हवा के कारण फूला हुआ महसूस करना है। यह आमतौर पर जल्दी ठीक हो जाता है। कुछ लोगों को गले में हल्के खराश, के अलावा, कोई महत्वपूर्ण परेशानी नहीं होती है।
डॉक्टर, आमतौर पर प्रक्रिया के तुरंत बाद ईसीपी का परिणाम बता देते हैं।
अगर बायोप्सी ली जाती है तो टिश्यू को लैब में भेजा जाता है और बायोप्सी रिपोर्ट जनरेट होने में कई दिन लगते हैं।
ईआरसीपी सुरक्षित होता है, तथा रोगियों द्वारा अच्छी तरह से सहन किया जाता है, खासकर तब, जब यह अनुभवी डॉक्टरों द्वारा किया जाता है। इसमें गंभीर जटिलताएं असामान्य हैं। यदि जटिलताएं होती हैं, तो उन्हें प्रबंधित किया जा सकता है। ईआरसीपी के बाद होने वाली जटिलताएं निम्नलिखित हैं:
• अग्नाशयशोथ (पैन्क्रीटाईटिस): यह सबसे आम जटिलता है जो ईआरसीपी के दौरान 3 से 5 प्रतिशत मरीजोे में होती है। इससे पेट में तेज दर्द होता है और जी मिचलाता है। आमतौर पर ईआरसीपी से, हल्का अग्नाशयशोथ (पैन्क्रीटाईटिस) होता है, जो अस्पताल में रहने से कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है। ईआरसीपी के बाद गंभीर अग्नाशयशोथ (पैन्क्रीटाईटिस) शायद ही कभी होता है।
• रक्तस्राव (ब्लीडिंग): ईआरसीपी प्रक्रिया के दौरान रक्तस्राव हो सकता है, जो अपने आप बंद हो जाता है। रोगियों के लिए उन दवाओं को बंद करना महत्वपूर्ण होता है (पहले चर्चा की गई) जो खून का थक्का बनने नहीं देती है जैसे: रक्त पतला करने की दवाई, warfarin आदि।
• छिद्र (परफोरेशन): ईआरसीपी स्कोप और उपकरण छोटी आंत में पंचर या छेद कर सकते हैं। यह एक गंभीर स्थिति है जिसमें आम तौर पर सर्जरी की आवश्यकता होती है। यह पित्त वाहिनी या अग्नाशय की नली में छेद भी पैदा कर सकता है।
• संक्रमण: कभी-कभी ईआरसीपी, पित्त नलिकाओं (बाइल डक्ट) या पित्त प्रणाली (बाइल सिस्टम) में संक्रमण का कारण भी बन सकता है जिसे कोलैंगाइटिस कहा जाता है। यह ज्यादातर पहले से मौजूद बीमरियों वाले रोगियों को प्रभावित करता है। इसका इलाज एंटीबायोटिक दवाओं और अतिरिक्त तरल पदार्थों को बाहर निकालने से होता है।
• एस्पीरेशन: ईआरसीपी प्रक्रिया पेट से भोजन या तरल पदार्थ की उल्टी को प्रेरित कर सकती है, जोकि फेफड़ों में जा सकती है जिसे एस्पीरेशन कहा जाता है। प्रक्रिया से कई घंटे पहले खाना या पानी न लेकर, इससे बचा जा सकता है।
• शामक (सिडेटिव) के कारण होने वाली प्रतिक्रिया: शामक (सिडेटिव) के कारण कुछ रोगियों में असामान्य प्रतिक्रिया हो सकती है, जो साँस या दिल की समस्याओं का कारण बन सकती है।
जटिलताओं को विकसित करने की प्रवृत्ति निम्नलिखित पर निर्भर करती है-
• संकेत- व्यक्ति में ईआरसीपी करने का कारण क्या है?
• रोगी की स्थिति- यदि कोई बड़ी चिकित्सा समस्याएं हैं?
• परिणाम- ईआरसीपी के दौरान कौन सी समस्या या खराबी पाई जाती है?
• आवश्यक उपचार- स्थिति का प्रबंधन करने के लिए कोैन से उपचार या तकनीक की आवश्यकता थी?
उदाहरण के लिए यदि कोई रोगी किसी परेशानी के इलाज के लिए ईआरसीपी करवा रहा है- जैसे पत्थर हटाने के लिए, उसमें जटिलता होने का खतरा अधिक होता है, बजाय उनके जो किसी समस्या की पहचान करने के लिए ईआरसीपी करवाते हैं।
डॉक्टर के साथ जटिलताओं को जानना और उस पर चर्चा करना और समस्या विकसित करने की संभावना को समझना महत्वपूर्ण है।
यदि किसी व्यक्ति में या उसके रिश्तेदार में निम्नलिखित समस्याओं में से कोई एक भी नजर आती है तो उन्हें तुरंत चिकित्सा सहायता लेनी चाहिए:
• पेट में तेज दर्द, जो गंभीर हो जाता है।
• बढ़ा हुआ और टाइट पेट।
• उल्टी विशेष रूप से खूनी या कॉफी के रंग की।
• खूनी या काले रंग का मल।
• बुखार या ठंड लगना
• निगलने में कठिनाई या गले में दर्द जो बढ़ जाता है।
• सीने में दर्द
• सांस लेने में समस्या।
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