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क्रोनिक किडनी डिजीज एक ऐसी बीमारी है, जिसमें किडनी के कार्य करने की क्षमता धीरे-धीरे कम होती चली जाती है। शरीर से खराब पदार्थों को निकालना तथा खून को छानना किडनी के मुख्य काम हैं। यह खून की नलियों से उत्पन्न अतिरिक्त द्रव्यों (फ्लूइड) को पेशाब के रुप में शरीर से बाहर निकालती है। इस तरह से, क्रोनिक किडनी डिजीज, शरीर की काम करने क्षमता को प्रभावित करती है। इस वजह से शरीर के अन्य अंग भी इससे प्रभावित होते हैं, जिनका परिणाम गम्भीर बीमारी या मौत हो सकती है।
क्रोनिक किडनी डिजीज का वैश्विक प्रसार लगभग 11 से 13 प्रतिशत के बीच है, जिसमें स्टेज 3 के मामले काफी ज्यादा है।
किडनी को लम्बे समय तक नुकसान पहुँचाने वाली स्थितियों तथा तत्वो से, क्रोनिक किडनी डिजीज हो सकता है। क्रोनिक किडनी डिजीज के दो प्रमुख कारण डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर हैं। इस बीमारी का पता लगाने के लिए, डाॅक्टर आपकी स्वास्थ्य से सम्बन्धित जानकारी लेने के साथ-साथ खून की जाँच भी कराते है और इनके परिणामों के आधार पर इलाज की रूपरेखा तय करते हैं।
डायबिटीज: खून मे ग्लूकोज की अधिक मात्रा किडनी की कार्यप्रणाली पर असर डालती है। यह किडनी की, खराब पदार्थों और अतिरिक्त द्रव्यों (फ्लूइड) को शरीर से बाहर निकालनें की क्षमता को प्रभावित करती है। डायबिटीज के कारण होने वाली किडनी की बीमारी को डायबेटिक किडनी डिजीज कहा जाता है।
हाई ब्लड प्रेशर: हाई ब्लड प्रेशर खून की नलियों को नुकसान पहुँचाता है। यह किडनी की, खराब पदार्थों और अतिरिक्त द्रव्यों (फ्लूइड) को शरीर से बाहर निकालनें की क्षमता पर असर डालता है। खून की नलियों में अतिरिक्त द्रव्यों (फ्लूइड) के परिणाम स्वरूप, ब्लड प्रेशर बढ़ जाता है, जिससे एक घातक दुष्चक्र बन जाता है।
अन्य कारण जिस वजह से किडनी की बीमारी होती है, वह इस प्रकार हैं।
• पोलीसिस्टिक किडनी डिजीज (PKD): यह एक ऐसा संक्रमण है, जिसके कारण किडनी में छोटी- छोटी गाँठें पैदा हो जाती हैं, जो किडनी के टिस्यू का स्थान ले लेती हैं, जिससे किडनी के काम करने की क्षमता पर असर पड़ता है।
• दवायेंः जो किडनी को नुकसान पहुचाती हैं।
• लुपस नेफ्राईटिसः ल्युपस के कारण होने वाली किडनी की बीमारी।
• आईजीए ग्लोमेरुलोनेफ्राईटिस
• आटोइम्यून अवस्थायें: जैसे की गुडपास्टर सिंड्रोम, जिसमें शरीर की इम्यून प्रणाली खुद के अंगों और कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाती है।
• भारी धातु विषैलापन: जैसे कि सीसे का विषैलापन।
• अलपोर्ट सिंड्रोम
• हिमोलाईटिक यूरेमिक सिंड्रोम, जो बच्चों में होता है
• Henoch-Schönlein परपूरा
• रीनल आर्टरी स्टेनोसिस
• डायबिटीज: डायबिटीज, क्रोनिक किडनी डिजीज का सबसे सामान्य कारण है। डायबीटीज से पीड़ित 3 में से लगभग 1 व्यक्ति में यह बीमारी विकसित होती है। खून मे ग्लूकोज की मात्रा अधिक होने के कारण किडनी की खून की नसें खराब हो जाती है, जोकि क्रोनिक किडनी डिजीज का प्रमुख कारण है।
• हाई ब्लड प्रेशर: यह क्रोनिक किडनी डिजीज का दूसरा सबसे प्रमुख कारण है। हाई ब्लड प्रेशर से पीड़ित 5 में से 1 व्यक्ति में यह बीमारी पायी जाती है। हाई ब्लड प्रेशर भी खून की नसों को क्षतिग्रस्त करता है, जोकि क्रोनिक किडनी डिजीज का प्रमुख कारण है।
• दिल की बीमारी: ऐसा माना जाता है कि, जो लोग दिल की बीमारी से ग्रस्त होते है, उनमें इस बीमारी के होने का खतरा अधिक होता है। इसके बिल्कुल उलट, जिनको किडनी की बीमारी होती है, उनमें भी दिल की बीमारी होने का खतरा अधिक होता है।
• पारिवारिक इतिहास: एक व्यक्ति में किडनी की बीमारी होने के खतरा तब अधिक होता है, जब उसके परिवार के किसी निकट सदस्य जैसे माता, पिता, भाई और बहन को किडनी फेल्योर हुआ हो।
किडनी की बीमारी परिवार में पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है। इसलिए यदि परिवार के किसी सदस्य को किडनी की बीमारी है, तो सारे सदस्यों को जाँच करानी चाहिये।
• उम्र: बढ़ती उम्र के साथ किडनी की बीमारी होने का खतरा बढ़ता जाता है। यदि कोई व्यक्ति लम्बे समय से डायबिटीज, ब्लड प्रेशर या दिल की बीमारी से ग्रस्त है, तो उसको किडनी की बीमारी होने का खतरा बढ़ जाता है। 30 से 40 साल की उम्र के लोगों में किडनी की बीमारी का खतरा कम होता है, जो हर 10 साल बीतने के साथ बढ़ता चला जाता है, जोकि 50 साल की उम्र को लोगों में 16 प्रतिशत और 70 साल की उम्र को लोगों 34.3 प्रतिशत होता है।
• नस्ल: शोध से यह पता चला है कि, विकसित क्षेत्रों जैसे यूरोप, अमेरिका (यूएस), कनाडा और आस्ट्रेलिया में क्रोनिक किडनी डिजीज की समस्या अधिक है, बजाय भारत और अफ्रीकी देशों जैसे विकासशील क्षेत्रों में। अमेरिका (यूएस) के अंदर, एफ्रो-अमेरिकन, हिस्पैनिक और इंडो-अमेरिकन में क्रोनिक किडनी डिजीज होने का खतरा अधिक होता है। इन लोगों में क्रोनिक किडनी डिजीज का खतरा डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, खानपान और अधिक वजन जैसी समस्याओं के कारण अधिक होता है।
• सेक्स: शोध से यह पता चला है कि महिलाओं में, क्रोनिक किडनी डिजीज की समस्या पुरूषों के मुकाबले अधिक होती है।
• धूम्रपान (स्मोकिंग): धूम्रपान को क्रोनिक किडनी डिजीज के फैलाव से जुड़ा नहीं पाया गया है।
• मोटापा (ओबेसिटी): मोटापा से एन्ड स्टेज किडनी डिजीज होने का खतरा अधिक होता है।
ज्यादातर लोंगों में किडनी की बीमारी के लक्षण, तब तक दिखायी नही देते हैं, जब तक की किडनी की कार्यक्षमता पर असर न पडें। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि साधारण रूप से काम करने वाली दोनो किडनी की खून साफ करने की क्षमता, शरीर को स्वस्थ्य बनाये रखने की आवश्यकता से कहीं अधिक होती है। एक व्यक्ति अपनी एक किडनी को दान देने के बाद भी, दूसरी किडनी के साथ स्वस्थ्य रह सकता है।
इसलिए, क्रोनिक किडनी डीजीज की शुरूआती अवस्था के दौरान, ज्यादातर लोग किडनी के क्षतिग्रस्त होने के बावजूद भी स्वस्थ्य दिखायी देते है। इसका पता केवल खून और पेशाब की जाँच से लगाया जा सकता है, जोकि किडनी की कार्य प्रणाली को जाँचने के लिए की जातीं है। जिन व्यक्तियों को किडनी की समस्या होती है, उनमें शुरूआती रूप से सूजन के लक्षण देखे जा सकते हैं, जोकि सामान्यत: पैरों, पंजों तथा एड़ियों और प्राय: चेहरे और हाथों में होती है। यह शरीर में पानी और नमक के जमा हो जाने के कारण होता है।
किडनी की बीमारी के ज्यादा बढ़ जाने से, व्यक्ति में निम्न प्रकार के लक्षण देखे जा सकते हैं:
• शरीर में सूजन (पैर, पंजा तथा एड़ियाँ) होना
• भूख न लगना
• नींद ज्यादा महसूस करना
• जी मिंचलाना और उल्टी होने की भावना
• सोचने और समझने में परेशानी होना
• ब्लड प्रेशर बढ़ना
• एनीमिया
• वजन
• इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन जैसे कि उच्च पोटेशियम लेवल
• थकान महसूस करना
• मोंच आना
• त्वचा का सूख जाना
• हड्डियों की बीमारी
क्रोनिक किडनी डीजीज से अन्य गम्भीर समस्यायें हो सकती है, जिनमें से कुछ इस बीमारी को और अधिक खराब कर सकती हैं।
क्रोनिक किडनी डीजीज से निम्न स्वास्थ्य समस्याये हो सकती हैं।
• दिल की बीमारी: कीडनी की बीमारी से दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है।
• उच्च रक्त चाप (हाई ब्लड प्रेशर): बीमारी के कारण, किडनी रक्त चाप (ब्लड प्रेशर) को नियंत्रित नहीं कर पाती हैं, जोकि वह प्राय: करती हैं। इसके परिणाम स्वरूप उच्च रक्त चाप (हाई ब्लड प्रेशर) की समस्या उत्पन्न हो सकती है। उच्च रक्त चाप (हाई ब्लड प्रेशर) के कारण किडनी धीरे- धीरे खराब होती जाती है, जो बाद में एक गम्भीर समस्या बन जाती है।
• घात (स्ट्रोक): क्रोनिक किडनी डीजीज से होने वाले हाइपरटेंशन और दिल की बीमारियों से घात (स्ट्रोक) का खतरा बढ़ जाता है।
• अक्यूट किडनी इंजरी: बीमारी, संक्रमण, चोट या कुछ दवाईयों के कारण किडनी की कार्यक्षमता पर जो असर होता है, उसे अक्यूट किडनी इंजरी कहते हैं।
क्रोनिक किडनी डीजीज यह सिद्ध करती है कि, किडनी को किसी गम्भीर समस्या से लम्बे समय से नुकसान हो रहा है। क्रोनिक किडनी डीजीज एक बढ़ने वाली बीमारी है, जोकि पलटी नही जा सकती है, हाँलांकि यदि इसकी पहचान समय पर कर ली जाये तो, इसको आगे बढ़ने से रोका जा सकता है। इस बीमारी की पहचान हो जाने का मतलब यह नही होता है कि, मरीज को डायलिसिस अथवा किडनी प्रत्यारोपण (ट्रान्सप्लान्ट) की आवश्यकता है, या वह स्वस्थ्य जीवन व्यतीत नही कर सकता है। यह महत्नपूर्ण है कि बीमारी की पहचान समय रहते कर ली जाये, ताकि उसके इलाज के लिए सही कदम उठाये जा सकें और किडनी फेल्योर जैसी अवस्था तक पहुँचने से पहले इस बीमारी को रोका जा सके।
किडनी फेल्योर से तात्पर्य यह है कि, किडनी अपनी कार्य करने की क्षमता को खो चुकी है, यानी उसकी कार्य क्षमता 15 प्रतिशत से भी कम हो चुकी है। यह अवस्था एन्ड स्टेज रीनल डीजीज के नाम से जानी जाती है, जिसमें मरीज को या तो डायलिसिस या किडनी प्रत्यारोपण (ट्रान्सप्लान्ट) से गुजरना पड़ता है, जिससे मरीज के अच्छे स्नास्थ्य तथा जीवन को वनाये रखा जा सके।
ज्यादातर, किडनी की बीमारी के कोई शुरुआती लक्षण दिखायी नही देते हैं, इसलिए क्रोनिक किडनी डीजीज को पहचानने का एकमात्र तरीका, किडनी की कार्यप्रणाली गो जाँचने वाले परिक्षण होते हैं। उन व्यक्तियों को किडनी की बीमारी की जाँच अवश्य करानी चाहिए, जिनको की निम्न समस्यायें हैं:
• डायबिटीज
• हाई ब्लड प्रेशर
• परिवार में किडनी फेल्योर का इतिहास
वह व्यक्ति जो डायबिटीज से पीड़ित है, उनको किडनी की जाँच वार्षिक रूप से करानी चाहिये। वह व्यक्ति जो हाई ब्लड प्रेशर, दिल की बीमारी से पीड़ित हैं या जिनके परिवार में किसी को किडनी फेल्योर हुआ है, उनको डाॅक्टर से यह सलाह अवश्य लेनी चाहिये कि, जाँचें कब और कितनी बार कराई जाँयें। किडनी की बीमारी का पहचान जितनी जल्दी हो सके उतनी ही जल्दी इलाज में आसानी होती है, जिससे की किडनी को अन्य नुकसानों से बचाया जा सके।
किडनी की बीमारी की पहचान दो सामान्य जाँचों से की जा सकती है।
यूरीन टेस्ट फोर प्रोटीन (अल्ब्युमिन): किडनी में प्रोटीन की मौजूदगी किडनी खराब होने का संकेत हैं।
क्रियेटिनिन के लिए खून की जाँच: यह ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन रेट (जीएफआर) का पता लगाने के लिए किया जाता है, जोकि किडनी के काम करने की हद का पता लगाता है।
यदि ये जाँचें सामान्य आती भी हैं, तो भी इन्हें भविष्य में कराते रहना चाहिये, विशेष रूप से तब, जब किडनी की बीमारी होने के जोखिम मौजूद हों।
जीएफआर या इजीएफआर का मतलब ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन रेट है, जो एक अवधि है। इसका इस्तेमाल ग्लोमेरुलाई से एक मिनट में कितना खून गुजरता है इसका पता लगाने के लिए किया जाता है। ग्लोमेरुलाई किडनी के अंदर मौजूद बहुत छोटे फिल्टर होते हैं, जोकि खून से खराब पदार्थों को हटाते हैं।
ग्लोमेरुलाई से खून गुजरने की दर हमें किडनी के काम करने का आकलन प्रदान करती है।
जीएफआर को किडनी के काम करने और बीमारी के स्तर का पता लगाने का एक बेहतर जाँच माना जाता है।
खून का नमूना लेकर, उसे प्रयोगशाला में क्रियेटिनिन का पता लगाने के लिए भेजा जाता है। क्रियेटिनिन, क्रिटाईन का एक खराब पदार्थ है, जोकि एक रसायन होता है। यह शरीर में ऊर्जा की आपूर्ति करती है, खासकर माँशपेशियों में।
लिये गये क्रियेटिनिन स्तर को दूसरे कारकों के साथ मिलाकर जीएफआर का अनुमान लगाया जाता है। बच्चों और वयस्कों के लिए अलग-अलग फार्मूले अपनाये जाते हैं, जोकि निम्नलिखित में से कुछ या सभी हो सकते हैः
• उम्र
• ब्लड क्रियेटिनिन की माप
• नस्ल
• लिंग
• कद की लम्बाई
• वजन
किडनी के कामकाज को जाँचने के लिए एक अन्य जाँच की जा सकती है, जिसे क्रिएटिनिन क्लीयरेंस टेस्ट कहा जाता है। इसमें 24 घंटे तक पेशाब इकट्ठा करना पड़ता है।
3 या उससेअधिक महीने के लिए 60 mL/min/1.73 m2 से कम स्तर, क्रोनिक किडनी डीजीज का संकेत है। 15 mL/min/1.73 m2 से नीचे जीएफआर, किडनी फेलियर का सुझाव देता है, जिसमें तुरंत चिकित्सकीय सहायता की आवश्यकता होती है।
जीएफआर के बारे में अधिक जानकारी के लिए पढ़ें
अपने जीएफआर की गणना करें (वयस्को के लिए- 18 वर्ष की आयु से अधिक)
यूरीन टेस्ट फोर अल्ब्युमिन: यह जाँच किडनी को होने वाले नुकसान को जानने के लिए की जाती है। यह इस तथ्य पर आधारित है कि, स्वस्थ्य किडनी अल्ब्युमिन को पेशाब में जाने से रोकती है। अल्ब्युमिन एक प्रोटीन होता है, जोकि खून में पाया जाता है। पेशाब में अल्ब्युमिन के पाये जाने को अल्ब्युमिनुरिया कहते हैं, जिससे किडनी के क्षतिग्रस्त होने का पता चलता है। पेशाब में अल्ब्युमिन की मात्रा जितनी कम हो, वह उतना ही अच्छा होता है।
एक स्वास्थ्य कर्मचारी पेशाब में अल्ब्युमिन का पता दो तरीके से लगा सकता है।
मूत्र परिक्षण जाँच (डिपस्टिक टेस्ट): एक रसायन से उपचारित पट्टी जिसे डिपस्टिक कहा जाता है, जिसको इकट्ठा किये गये पेशाब के नमूनें में डालकर अल्ब्युमिन का पता लगाया जाता है। पेशाब में अल्ब्युमिन की उपस्थिति से डिपस्टिक का रंग बदल जाता है।
यूरीन अल्ब्युमिन टू क्रिएटिनिन रेटियो (यूएसीआर)): यह दिये गये पेशाब के नमूनें में अल्ब्युमिन की मात्रा की जाँच तथा इसका मिलान क्रिएटिनिन की मात्रा के साथ करता है। यदि यूरीन अल्ब्युमिन का परिणाम 30 mg/g या इससे कम होता है, तो वह सामान्य होता है। यदि यूरीन अल्ब्युमिन का परिणाम 30 mg/g से अधिक होता है तो यह किडनी की बीमारी के होने के लक्षण को दर्शाता है। किडनी की बीमारी में, पेशाब में अल्ब्युमिन की मात्रा को जाँचने से, कौन सा इलाज मरीज के लिए बेहतर है इसको निर्धारित करने में मदद मिलती है। यूरीन अल्ब्युमिन लेबल के सामान्य रहने या गिरने से दिये गये इलाज की प्रतिक्रिया का पता चलता है।
किडनी की बीमारी की पाँच स्टेज होती हैं। यह किडनी की बीमारी को उसके नुकसान तथा ग्लोमेरुलर फिल्ट्रेशन रेट (जीएफआर) के आंकडे के आधार पर बाँटती हैं। इसका इलाज बीमारी के स्टेज पर निर्भर करता है, जोकि इस प्रकार है।
स्टेज | किडनी किडनी फंक्शन | जीएफआर | किडनी के काम करने का प्रतिशत |
---|---|---|---|
स्टेज 1 | सामान्य किडनी फंक्शन के साथ किडनी की क्षति | 90 या उससे ज्यादा | 90-100% |
स्टेज 2 | माइल्ड किडनी फंक्शन के साथ किडनी की क्षति | 80 से 60 | 89-60% |
स्टेज 3 ए | किडनी के काम करने में हल्की से मद्यम क्षति | 59 से 45 | 59-45% |
स्टेज 3 बी | किडनी के काम करने में मद्यम से गंभीर क्षति | 40 से 30 | 40-30% |
स्टेज 4 | किडनी के काम करने में गंभीर क्षति | 29 से 15 | 29-15% |
स्टेज 5 | किडनी का काम करना बंद हो जाना | 15 से कम | 15% से कम |
जीएफआर की सँख्या आपके किडनी के कामकाज को बताता है। जैसे-जैसे किडनी की बीमारी गंभीर होती जाती है, वैसे-वैसे जीएफआर की सँख्या कम होती जाती है।
एक व्यक्ति यह जान सकता है कि, दिया गया इलाज काम कर रहा है यदि:
• जीएफआर सामान्य रहता है।
• यूरीन अल्व्युमिन सामान्य रहता है या कम हो जाता है।
• ऊपर दिये गये परिणामों का बिगड़ना बीमारी के बिगड़ने को दर्शाता है।
इस बिमारी का इलाज, इसके कारकों, किडनी की बीमारी की अवस्था, तथा उससे जुड़ी अन्य स्वास्थ्य समस्याओं पर निर्भर करता है। कुछ कारक है, जिनकों इलाज करके बदला जा सकता है, जैसे उन दवाईयों का उपयोग जिनसे कि किडनी की कार्यप्रणाली पर असर होता है, पेशाब की नली में रूकावट या किडनी में खून के दौड़ान कम होना। इन समस्याओं के इलाज से क्रोनिक किडनी डिजीज को और अधिक बिगड़ने से रोका जा सकता है।
शोध से पता चला है कि, क्रोनिक किडनी डिजीज का इलाज तब और अधिक अच्छा होता है जब, नेफ्रोलोजिस्ट की सलाह ली जाये जो किडनी की बीमारीयों का विशेषज्ञ होता है। इलाज की रुपरेखा का सही तरीके से पालन किडनी को और अधिक क्षति पहुँचने से रोकने, तथा उसके लम्बे समय तक कार्य करनें में सहायक होता है। किडनी की बीमारी का पता जितना जल्दी होता है, उतनी जल्दी किडनी को आगे होने वाले नुकसान से बचाया जा सकता है, और उससे जुड़ी बीमारीयों जैसे दिल की बीमारी, एनेमिया और घात (स्ट्रोक) आदि को रोका जा सकता है।
क्रोनिक किडनी डिजीज के रोगियो को लिए इलाज की निम्नलिखित रूपरेखा अपनायी जाती है:
क्रोनिक किडनी डिजीज को बढ़ने से रोकने के लिए जो सबसे महत्वपूर्ण कदम है वह है रक्त चाप (ब्लड प्रेशर) को नियंत्रण में रखना। ज्यादातर लोगों के लिए ब्लड प्रेशर का लक्ष्य 130/80 mm Hg होता है। बीमरी तथा जुड़े हुये तथ्यों के आधार पर विभिन्न लोगों के लिए अलग-अलग लक्ष्य हो सकते है, जिसका निर्णय विशेषज्ञ करता है।
उचित ब्लड प्रेशर के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाये जा सकते हैंः
• ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने के लिए लिखी दवाईयों का सेवन करना। किडनी की बीमारी से प्रभावित लोगों में एन्जियोटेनसिन- कनवर्टिंग एनजाइम (ACE) इनहिबिटर्स या एन्जियोटेनसिन- रिसेप्टर ब्लोकर्स (ARBs) दिये जाते है, जो किडनी को नुकसान से बचाते हैं।
• स्वस्थ्य खानपान का सेवन करना और खाने में नमक कम लेना।
• धूम्रपान न करना।
• शारीरिक रूप से सक्रिय होना और व्यायाम करना। यदि वजन ज्यादा है तो उसको कम करने फायदा होता है।
• पूरी नींद लेना।
• नियमित तौर पर ब्लड सुगर पर निगरानी रखना: परिणामों के बारें में चिकित्सक से सलाह लें और आगे की रणनीति पर नियमित रूप से बात करें. चिकित्सक 3 महीनों के ब्लड ग्लुकोज को जानने के लिए HbA1C की जाँच करेगा। HbA1C का अधिक परिणाम 3 महीनों के दौरान शरीर में अधिक ग्लुकोज को दर्शाता है। डायबिटीज से प्रभावित ज्यादातर लोगों में HbA1C का लक्ष्य 7 प्रतिशत से कम होता है। मरीजों को अपने मनचाहे लक्ष्य के लिए चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिये।
• खानपान के लिए डाक्टर या डायटीसियन की दी गयी सलाह के माने।
• दवाईयों और इन्सुलिन के लिए डाक्टर की दी गयी सलाह के माने।
जैसे कि किडनी की बीमारी समय के साथ-साथ गम्भीर होती जाती है, नियमित जाँचों और किडनी की कार्यप्रणाली पर निगरानी की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है, जिससे की इलाज की स्थिति का पता चल सके और आगे होने वाले नुकसान को टाला जा सके। जो जाँचे किडनी की बीमारी का पता लगाने और उसके वर्गीकरण के लिए इस्तेमाल की जाती है, उन्हीं जाँचों का इस्तेमाल बाद में किडनी की कार्यप्रणाली पर नजर रखने तथा उसको होने वाले नुकसान का आँकलन करने के लिए की जाती है।
किसी भी इलाज की रूपरेखा का लक्ष्य है:
• जीएफआर (GFR) को सामान्य बनाये रखना
• यूरीन अल्ब्युमिन को सामान्य या कम बनाये रखना
चिकित्सक ब्लड प्रेशर की भी जाँच करेगे यह देखने कि लिए की वह नियंत्रण में है या नही।
डायबिटीज की अवस्था में, HbA1C level की जाँच ब्लड ग्लुकोज की मात्रा को जानने के लिए की जाती है।
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