This post is also available in: English (English)
एपेन्डिसाइटिस, जैसे कि नाम से पता चलता है कि, यह एपेन्डिक्स की सूजन होती है। ‘एपेन्डिक’ का मतलब एपेन्डिक्स होता है और ‘आइटिस का मतलब’ सूजन होता है।
एपेन्डिक्स, सीकम के निचले हिस्से (बड़ी आंत का पहला भाग) से जुड़ी एक पतली ट्यूब जैसा अंग होता है। एपेन्डिक्स को, एक बिना काम का अंग माना जाता है, हाँलांकि, नए अध्ययनों आंत्र प्रतिरक्षा में इसकी भूमिका का पता चला है।
एपेन्डिसाइटिस के कई कारण हो सकते हैं, लेकिन कई मामलों में कारण स्पष्ट नहीं हो पाते है।
• पारंपरिक रूप से, यह लुमेन की रुकावट के कारण होता है, जिसे इसमें ठहराव उत्पन्न होता है, जिससे इसमें बैक्टीरिया उत्पन्न हो जाते हैं। यही बैक्टीरिया, एपेन्डिक्स की सूजन का कारण बनते हैं। कभी-कभी इसमें मवाद भी बन सकता है, और जटिल मामलों में यह पेट के अंदर फूट भी सकता है। एपेन्डिक्स के ल्यूमेन की रुकावट का कारण पत्थर, परजीवी या इसके आकार में बढ़ोत्तरी हो सकते है।
• आंत्र में संक्रमण, एपेन्डिक्स के फूलने और सूजन का कारण बनते हैं
• इन्फ्लामेट्री बाॅवल डिजीज
• पेट की चोट
एपेन्डिसाइटिस होने की संभावना आमतौर पर 10-30 वर्ष की आयु के बीच के किशोरों और युवा वयस्कों में अधिक होती है। उम्र बढ़ने के साथ-साथ एपेन्डिसाइटिस होने का खतरा कम होता चला जाता है।
एपेन्डिसाइटिस होने का खतरा उन लोगों में अधिक होता है, जो लोग माँस से प्राप्त फैट और प्रोटीन का सेवन अत्यधिक मात्रा में करते हैं, और फाइबर युक्त खाने का सेवन कम करते हैं।
एपेन्डिसाइटिस का सबसे आम लक्षण पेट में दर्द है।
पेट दर्द: दर्द आम तौर पर पेट के दाँई ओर निचले हिस्से में एपेन्डिक्स की जगह पर होता है। यह दर्द आमतौर पर अचानक विकसित हो जाता है, जोकि कम समय में गंभीर रूप धारण कर लेता है। कई लोगों में दर्द, पहले नाभि के आसपास शुरू होता है, और फिर दाईं ओर एपेन्डिक्स की जगह की ओर बढ़ता चला जाता है। दर्द, एपेन्डिक्स की जगह पर दबाव पड़ने, इधर-ऊधर जाने, गहरी सांस लेने, खांसने या छींकने से और बढ़ सकता है। गर्भवती महिलायें, बढ़े हुए गर्भाशय द्वारा एपेन्डिक्स के विस्थापन के कारण, दाईं ओर पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द का अनुभव कर सकती है।
एपेन्डिसाइटिस के अन्य लक्षण, जो पेट में दर्द के साथ हो सकते हैं:
• जी मिचलाना
• भूख न लगना
• उल्टी
• बुखार
• कब्ज या दस्त
• पेट की सूजन
• असुविधा को दूर करने के लिए मल पारित करने की भावना
लक्षण विभिन्न लोगों के लिए अलग-अलग हो सकते हैं।
एपेन्डिसाइटिस एक गंभीर चिकित्सा स्थिति है, जिसके कारण पेट में गंभीर समस्याएं पैदा हो सकती हैं। इसके लिए तुरंत चिकित्सा देखभाल की आवश्यकता होती है, जो लक्षणों में राहत प्रदान कर सकती है, और जटिलताओं की संभावना को कम कर सकती है।
यदि कोई व्यक्ति या उसके परिवार का कोई भी सदस्य, ऊपर बताये गये लक्षणों का अनुभव करता है, तो व्यक्ति को तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए, या अस्पताल के आपातकालीन विभाग में जाना चाहिए।
यह बच्चों और गर्भवती महिलाओं के लिए अधिक महत्वपूर्ण हो जाता है।
एपेन्डिसाइटिस का इलाज यदि सही समय पर न किया जाये, तो यह गंभीर जटिलताओं का कारण बन सकती है जैसे:
• एपेन्डिक्स का फूटने से पेरिटोनिटिस होना: सूजे हुये एपेन्डिक्स के फूटने से पेट में संक्रमण फैल सकता है, जिसके परिणामस्वरूप पेरिटोनिटिस नामक गंभीर स्थिति उत्पन्न हो सकती है। यह स्थिति जानलेवा हो सकती है, जहां एपेन्डिक्स को हटाने और पेट की गुहा को साफ करने के लिए तत्काल सर्जरी की आवश्यकता होती है।
• एपेन्डिक्स का फूटना जो उसके आसपास मवाद इकट्ठा करता है
• एपेन्डिक्स के चारों ओर नरम सूजे हुये ऊतकों के मास का निर्माण।
कभी-कभी एपेन्डिसाइटिस अपने आप ठीक हो जाता है। इन मामलों में बाधा अस्थायी होती है, और अपने आप ही ठीक हो जाती है, जिसे रिकरेंट एपेन्डिसाइटिस कहा जाता है। दर्द, आम तौर पर 24-48 घंटे तक रहता है और अचानक कम हो जाता है।
कुछ मामलों में दर्द कम गंभीर होता है, और लगभग 1-2 दिनों तक रहता है, और अक्सर कई हफ्तों, महीनों या वर्षों तक होता रहता है।
डॉक्टर लक्षण विवरण और शारीरिक परिक्षण के परिणामों के आधार पर एपेन्डिसाइटिस का संदेह करेंगे।
डॉक्टर दर्द और संभावित कारण की चिन्हित करने के लिए कई सवाल पूछेंगे।
• दर्द कब और कैसे शुरू हुआ और कैसे आगे बढ़ा: यदि इसकी शुरुआत अचानक/क्रमिक है। यह कितने समय से है ।
• पेट दर्द फैला हुआ या स्थानीयकृत है
• पेट में दर्द कहां है: ऊपरी हिस्से में, छाती की पसली के ठीक नीचे, बीच में या किनारों पर, नाभी के पास या पेट के दाहिने निचले हिस्से में आदि।
• क्या दर्द नाभी के आसपास से, पेट के दाईं ओर चला गया है।
• दर्द की गंभीरता क्या है: जैसे हल्का, मध्यम, गंभीर या असहनीय आदि।
• क्या दर्द से जुड़े कोई अन्य लक्षण जैसे मतली, उल्टी, बुखार, मूत्र में जलन आदि हैं।
• अन्य चिकित्सा स्थितियां: पहले इसी तरह का दर्द, कोई निदान जो पहले किया गया हो, अतीत में की गई कोई भी सर्जरी।
• दवा, शराब या मादक दवाओं का सेवन।
शारीरिक परिक्षण: डॉक्टर दर्द की गंभीरता, पेट की मांसपेशियों की जकड़न में कुछ बदलावों का निरीक्षण करने के लिए पेट को देखेंगे और छूएंगे। डॉक्टर संदेह के आधार पर सोआस साइन, ऑब्टूर साइन, डिजिटल गुदा परिक्षण या पेल्विक परिक्षण जैसे कुछ अन्य परीक्षण कर सकते हैं।
डॉक्टर प्रारंभिक निदान में सहायता और अन्य स्थितियों को नकारने के लिए कुछ और प्रयोगशाला परीक्षण कर सकते हैं।
खून की जाँच: इसमें, सीबीसी (कंपलीट ब्लड काउंट), डीएलसी (डिफरेन्सियल ल्यूकोसाइट काउंट), सीआरपी आदि शामिल हैं। ये संक्रमण के का कारण की पहचान करने के लिए किए जाते हैं। यह शरीर में तरल पदार्थ और इलेक्ट्रोलाइट असंतुलन का भी संकेत दे सकते है।
पेशाब की जाँच: इसमें यूरीन रूटीन या यूरीन कल्चर शामिल हो सकते हैं। यह यूटीआई (मूत्र पथ संक्रमण) या गुर्दे की पथरी की समस्या को नकारने के लिए किया जाता है।
गर्भावस्था परिक्षण: यह महिलाओं में किया जाता है, खासकर यदि महिला को महावारी की देरी या उसके नहीं होने का इतिहास है।
अल्ट्रासाउंड: यह परिक्षण, आमतौर पर एपेन्डिसाइटिस की पुष्टि करने वाला पहला इमेजिंग परीक्षण होता है। यह उन समस्याओं की पहचान करने के लिए भी किया जाता है, जिनके लक्षण एपेन्डिसाइटिस की तरह दिखते हैं, जैसे किडनी की पथरी /मूत्रमार्ग की पथरी, और महिलाओं की स्थिति जैसे अंडाशय के पुटी में रक्तस्राव आदि।
इससे एपेन्डिसाइटिस की जटिलताओं का भी पता लगाया जा सकता है।
कुछ मामलों में अल्ट्रासाउंड पर एपेन्डिसाइटिस के निदान की पुष्टि नहीं हो पाती है। अल्ट्रासाउंड पर एपेन्डिसाइटिस का पता लगाना दो चीजों पर निर्भर करता है:
• एपेन्डिक्स की स्थिति, जो एक से दूसरे व्यक्ति में भिन्न हो सकती है
• शरीर की चर्बी की मात्रा और पेट की गैस, जो अल्ट्रासाउंड पर एपेन्डिसाइटिस को देखने में बाधा उत्पन्न कर सकती है
सीटी स्कैन: यह परिक्षण, शरीर के अंदरुनी अंगों की छवियों को बनानाे के लिए एक्स-रे का उपयोग करता है। सीटी स्कैन में एपेन्डिसाइटिस और उसकी जटिलताओं का पता लगाने की दर बहुत अधिक होती है। एपेन्डिसाइटिस की तरह लक्षण पैदा करने वाली दूसरी स्थितियों को नकारने के लिए यह काफी अच्छा परिक्षण होता है।
सावधानी: इस परिक्षण को करने से पहले, महिलाओं को अपनी गर्भावस्था की स्थिति के बारे में पता होना चाहिए, क्योंकि सीटी स्कैन से निकलने वाली एक्स-रे गर्भ में पल रहे भ्रूण को नुकसान पहुंचा सकती हैं। यह उन महिलाओं के लिए और भी महत्वपूर्ण हो जाता है, जिनकी महावारी में देरी हुयी है या वह छुट गये हैं। सीटी स्कैन कराने से पहले महिलाओं को गर्भावस्था परिक्षण कराना चाहिए।
एमआरआई: यह परिक्षण तब किया जाता है, जब सीटी स्कैन निम्न कारणों से नहीं किया जा सकता हैः
• गर्भवती महिलाओं में भ्रूण के लिए एक्स-रे का हानिकारक प्रभाव।
• जब सीटी में उपयोग किए जाने वाले कोन्ट्रास्ट के खिलाफ मतभेद होता है।
एमआरआई को सुरक्षित और विश्वसनीय माना जाता है, लेकिन यह काफी महंगा, समय लेने वाला होता है, और छोटे केंद्रों में यह सुविधा उपलब्ध नहीं है।
एपेन्डिसाइटिस को एक आपात स्थिति माना जाता है, जहां 24 घंटे के बाद एपेन्डिक्स के फूटने की संभावना काफी बढ़ जाती है। कई जगहों पर सर्जरी को उपचार का मुख्य आधार माना जाता है, और सर्जरी के बाद एंटीबायोटिक् दवाओं का इस्तेमाल संक्रमण को रोकने के लिए किया जाता है।
एपेन्डिसाइटिस के लिए पसंदीदा उपचार सर्जरी होता है, जोकि सूजे हुये एपेन्डिक्स को बाहर निकालने के लिए की जाती है, जिसे एपेन्डेक्टमी कहा जाता है। सर्जरी का प्रयोग निश्चित मामलों में ही किया जाता है, जहाँ बुखार और दर्द की समस्या लगातार बनी रहती है या जहां जटिलताओं का विकास होता है। शुरुआती सर्जरी एपेन्डिक्स के फूटने की संभावना को कम कर देता है।
सर्जरी सामान्य संज्ञाहरण (एनीस्थीसिया) के तहत दो तरीकों से किया जा सकता है:
• लेप्रोस्कोपिक सर्जरी: इस सर्जरी में पेट में छोटे चीरे लगाए जाते हैं, जिनमें से कैमरा लगी हुयी पतली ट्यूब डाली जाती है, जिसे लैप्रोस्कोप कहा जाता है। यह उपकरण पेट के अंदर से एपेन्डिक्स को काटकर बाहर ले आता है। इस सर्जरी में संक्रमण जैसी जटिलताओं की संभावना कम होती है। छोटा चीरा लगाने के कारण इसमें रिकवरी की संभावना काफी अधिक होती है।
• लैप्रोटॉमी सर्जरी: यह सर्जरी लेप्रोस्कोपिक डिवाइस का इस्तेमाल नहीं करती है, और निचले क्षेत्र में पेट को खोलने के लिए तुलनात्मक रूप से एक बड़ा कट (5-10 सेंटीमीटर) लगाया जाता है। इस सर्जरी को फोड़ा, एपेन्डिक्स के फूटने और पेरिटॉनिटिस जैसी जटिलताओं में पसंद किया जाता है- जिनकी वजह से संक्रमण पेट में फैलता है।
• एक सफल सर्जरी के बाद एक व्यक्ति को अस्पताल में आम तौर पर 1-2 दिनों के लिए रखा जाता है।
• डॉक्टर दोनों सर्जरी में, कई दिनों तक शारीरिक गतिविधि न करने की सलाह देते हैं।
– लेप्रोस्कोपिक सर्जरी: 3 से 5 दिन
– लैप्रोटॉमी सर्जरी: 10 से 14 दिन
• सर्जरी के बाद जटिलताएं: आम जटिलताये जो हो सकती हैं:
• घाव में संक्रमण- सबसे आम जटिलता
• छोटे आंत्र छोरों का फैलाव जिसे इलियस कहा जाता है
• निमोनिया- फेफड़ों में संक्रमण
सर्जरी की जटिलता दर आम तौर पर, मौत के 1 से कम जोखिम और अन्य पोस्ट सर्जरी के मुद्दों के 14 से भी कम सुझाव अध्ययनों के साथ बहुत कम है। जटिलताओं के साथ एपेन्डिसाइटिस के मामलों में यह थोड़ा अधिक है।
ऐसे कई मामले, जिनमें एपेन्डिसाइटिस का संदेह काफी अधिक होता है, लेकिन सर्जरी के दौरान एपेन्डिक्स सामान्य पाया जाता है। ऐसे मामलों में सर्जन भविष्य एपेन्डिसाइटिस की किसी भी संभावना से बचने के लिए एपेन्डिक्स को निकालना पसंद करते हैं। कुछ मामलों में सर्जन एक अलग पैथोलाजी पाते हैं, और शल्य चिकित्सा से इसका इलाज करते हैं।
जटिलता का उपचार जटिलता के प्रकार के अनुसार होता है।
पेरिटोनाइटिस के साथ फूटी एपेन्डिसाइटिस: आमतौर पर इन मामलों में तुरंत सर्जरी की आवश्कता होती है, क्योंकि पेरिटोनाइटिस मौत का कारण बन सकती है। इन रोगियों को लेप्रोटॉमी सर्जरी के लिए ले जाया जाता है, जहां एपेन्डिक्स को निकाल दिया जाता है, और संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए पेरिटोनम को साफ किया जाता है।
एपेन्डिक्स फोड़ा: इन रोगियों को आम तौर पर सर्जरी से पहले, और कई बार सर्जरी के दौरान फोड़ा की जगह में नली/ट्यूब डाल डालकर इनका इलाज किया जाता है। ट्यूब को पेट की दीवार केसे से अंदर डाला जाता है। इसे लगभग 2 सप्ताह तक अंदर रखा जाता है, जो फोड़े को धीरे-धीरे नालियों के माध्यम से बाहर निकाल देती है, और रोगी को संक्रमण के इलाज के लिए एंटीबायोटिक दवाएं दी जाती हैं। लगभग 6 से 8 सप्ताह के बाद जब संक्रमण और सूजन नियंत्रण में होती है, तो सर्जन सर्जरी द्वारा एपेन्डिक्स को हटा देता है।
हाल के कई अध्ययनों से पता चलता है कि, एपेन्डिसाइटिस के साधारण मामलों में एंटीबायोटिक दवाओं के साथ इनका इलाज किया जा सकता है। इनमें से अधिकांश लोगों को पहले वर्ष के दौरान एपेन्डिक्स सर्जरी की आवश्यकता नहीं होती है।
5 साल की अवधि के बाद भी इन मरीजों में अपेन्डिसाइटिस की देर से पुनरावृत्ति 40 प्रतिशत से कम पाई गयी है। अभी भी उपचार का मुख्य आधार सूजे हुये एपेन्डिक्स को सर्जरी द्वारा बाहर निकालना है। वर्तमान में केवल कुछ सेंटर ही बिना सर्जरी के इलाज कर रहे हैं।
एक व्यक्ति को अपने पसंदीदा उपचार का विकल्प चुनने से पहले, अपने डॉक्टर से शल्य चिकित्सा और गैर शल्य चिकित्सा विधियों के फायदे और नुकसान के बारे में चर्चा करनी चाहिए।
1. सर्जरी के बाद कई दिनों के लिए ज़ोरदार शारीरिक गतिविधि को सीमित करें:
लेप्रोस्कोपिक सर्जरी: 3 से 5 दिन
लैप्रोटॉमी सर्जरी: 10 से 14 दिन।
2. अधिक आराम करें, जो शरीर को ठीक करने में मदद करता है।
3. शारीरिक गतिविधि को धीरे-धीरे बढ़ाये, रोज के सामान्य कार्य और हल्की-फुल्की सैर के साथ शुरु करें। और फिर कुछ दिनों और हफ्तों के बाद जिम तथा खेलकूद जैसी जोरदार गतिविधियां प्रारम्भ करें।
4. डॉक्टर के साथ रिकवरी के समय, फोलो-अप और काम की शुरुआत के बारे में चर्चा करें।
5. यदि दर्द की दवा काम नहीं कर रही है, या आपको बुखार, खांसी आदि जैसे कोई नए लक्षण विकसित होते हैं, तो डॉक्टर को सूचित करें।
A single targeted dose of radiotherapy could be as effective at treating breast cancer as a full course, a long-term…
The loss of smell that can accompany coronavirus is unique and different from that experienced by someone with a bad…
Editors of The Lancet and the New England Journal of Medicine: Pharmaceutical Companies are so Financially Powerful They Pressure us…
प्रसवोत्तर अवधि क्या है? एक प्रसवोत्तर अवधि एक एैसा समय अंतराल है, जिसमें मां बच्चे को जन्म देने के बाद…
प्रसवोत्तर या स्तनपान आहार क्या है? पोस्टपार्टम डाइट वह डाइट है, जो मां को एक बार बच्चे के जन्म के…
बच्चे के बेहतर स्वास्थ्य के लिए खाने और बचने वाले खाद्य पदार्थों की सूची गर्भ धारण करने के बाद, बच्चे…
कैसे सामान्यीकृत चिंता विकार (जीएडी) का निदान किया जाता है? नैदानिक इतिहास: डॉक्टर आम तौर पर लक्षणों का विस्तृत इतिहास…
कैसे सामान्यीकृत चिंता विकार (जीएडी) का इलाज किया जाता है? सामान्यीकृत चिंता विकार का उपचार लक्षणों की गंभीरता और जीवन…
सामान्यीकृत चिंता विकार क्या है? चिंता, किसी ऐसी चीज के बारे में परेशानी या घबराहट की भावना है, जो हो…