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एन्जियोप्लास्टी, कोरोनरी आर्टरी डीजीज का इलाज करने की एक प्रक्रिया है। इसमें एक विशेष प्रकार की नली को रुकी तथा सिकुड़ी हुयी कोरोनरी धमनी (आर्टरी) के अंदर डाला जाता है जिसे कैथिटर कहते है। इसे नस के अंदर एक छोटे गुब्बारे को फुलाकर खोला जाता है।
यह एक कम अक्रामक प्रक्रिया है, जिसमें केवल एक चीरा लगाया जाता है।
कोरोनरी हार्ट डीजीज के इलाज के लिए एक अन्य प्रक्रिया, कोरोनरी आर्टरी बाईपास ग्राफ्टिंग (CABG) हैं। इसमें धातु से बने स्टेन्ट को रूकावट की जगह पर डाला जाता है, जो धमनी (आर्टरी) को फैलाकर रखता है। इसे एन्जियोप्लास्टी या स्टेंटिंग कहा जाता है।
आजकल कुछ दवाई युक्त स्टेन्ट का भी उपयोग होता है। आमतौर पर यह माना जाता है कि, ये स्टेन्ट धमनी में दुबारा होने वाली रुकावट को रोकते हैं।
ऐसा अनुमान लगाया गया है कि, भारत में लगभग 3 करोड़ से अधिक लोग कोरोनरी आर्टरी डीजीज की समस्या से ग्रसित हैं। पिछले चार दशकों में, कोरोनरी आर्टरी डीजीज का प्रसार 4 गुना बढ़ा है। यह शहरी जनसंख्या में काफी सामान्य है, जहाँ पर 10 में से लगभग 1 व्यक्ति इस बीमारी से ग्रसित है। कोरोनरी आर्टरी डीजीज के कारण होने वाली मौंतो में भी बढ़ोत्तरी हुयी है। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि कोरोनरी आर्टरी डीजीज के लगभग एक चौथाई (23 प्रतिशत) मरीजों की मौत इस कारण होती है।
एक गणना के अनुसार 2007 में लगभग 70 हजार लोगों की एन्जियोप्लास्टी हुयी, जिसमें सें 73 प्रतिशत स्टेन्ट दवाई युक्त थे। हाल ही के वर्षो में यह काफी अधिक बढ़ गया है। एक अनुमान के अनुसार 2017 में 3.87 लाख एन्जियोप्लास्टी की गयीं, और 5.11 लाख स्टेन्ट डाले गये, इनमें से 97 प्रतिशत स्टेन्ट दवाई युक्त थे।
अस्पताल, स्टेन्ट की संख्या और प्रकार, तथा कमरे और जगह के आधार पर एक एन्जियोप्लास्टी के पैकेज की लागत 1 से 3 लाख तक होती है। एनपीपीए (NPPA) द्वारा स्टेन्ट की कीमतों में कैपिंग के बाद एन्जियोप्लास्टी की लागत में 10 से 12 प्रतिशत की कमी आई है।
एन्जियोप्लास्टी के बाद जीवित रहने की दर लगभग 98.9 प्रतिशत है, जोकि काफी अधिक है। कोरोनरी आर्टरी बाईपास ग्राफ्टिंग (CABG) के बाद भी जीवित रहने की दर लगभग बराबर पायी गयी है, जोकि 98.2 प्रतिशत है। इन दोनों प्रक्रियाओं के होने के 5 साल के बाद भी इन मरीजों के लम्बे समय तक जीवित रहने की दर काफी अधिक पायी गयी है, जोकि लगभग 90 प्रतिशत है।
कोरोनरी आर्टरी डीजीज के वह मरीज जिन्हें दवाईयों या जीवनशैली में बदलाव के बावजूद भी कोई आराम नहीं मिलता है, उनमें एन्जियोप्लास्टी और कोरोनरी आर्टरी बाईपास ग्राफ्टिंग (CABG) जैसी प्रक्रियायों की आवश्यकता पड़ती है।
एन्जियोप्लास्टी का प्रयोग निम्न मामलों में किया जा सकता है:
• दिल का दौरा: धमनियों (आर्टरी) में रूकावट के कारण पड़ने वाला दिल का दौरा। दिल को नुकसान से बचाने के लिए, इसे आपातकालीन प्रक्रिया के रूप में किया जा सकता है।
• एन्जाइना: धमनियों में रूकावट के कारण छाती में होने वाला दर्द, जो दवाईयो से भी नियंत्रण में नहीं आता है।
• दिल के काम करने में परेशानी: धमनियों में रूकावट के कारण दिल के कामकाज में गिरावट।
एन्जियोप्लास्टी और स्टेन्ट के डालने से मरीज को शीघ्र आराम मिलता है, लेकिन कोरोनरी आर्टरी डीजीज के सभी मरीजों में इसको नहीं किया जा सकता है।
कोरोनरी आर्टरी बाईपास ग्राफ्टिंग (CABG) की आवश्यकता किन मरीजों को होती है, इसके बारे में जाने।
एंजियोप्लास्टी या कोरोनरी आर्टरी बाईपास ग्राफ्टिंग (CABG) में किस को चुनें, इसके बारे में जाने।
एन्जियोप्लास्टी एक कम अक्रामक प्रक्रिया है, जो कार्डियोलोजिस्ट (ह्रदय रोग विशेषज्ञ) द्वारा की जाती है। इस प्रक्रिया को कार्डिएक कैथीटेराइजेशन प्रयोगशाला या कैथ लैब में किया जाता है। इस प्रक्रिया में फ्लोरोस्कोपी मशीन (एक्सरे मशीन), कोन्ट्रास्ट डाई, कैथिटर, बलून कैथेटर और स्टेंट का इस्तेमाल होता है।
• बेहोश करने की प्रक्रिया: एन्जियोप्लास्टी में आमतौर पर एनिस्थिसिया की आवश्यकता नहीं होती है। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान मरीज जागता रहता है, लेकिन शामक दवाईयों (सिडेटीव) तथा दर्द निवारक दवाईयों से वह शांत रहता है।
• मरीज को खून पतला करने की दवाई तथा द्रव, आईवी लाइन द्वारा दी जाती है।
• कैथिटर को डालनें की तैयारी: एंन्टीसेप्टिक दवाई द्वारा पेट और जाँघ के बीच के भाग, कलाई या हाँथ के एक हिस्से को जीवाणुहीन (sterile) बनाया जाता है। एनेस्थेटिक दवाई को इंजेक्ट करके उस स्थान को सुन्न किया जाता है, जहाँ से कैथिटर को चीरा लगाकर अंदर डाला जाता है।
• कैथेटर गाईडेंस और एंन्जियोग्राफी: कैथेटर नामक एक विशेष लचीली नली को धमनी के अंदर डाला जाता है। एक्स-रे छवियों की मदद से कैथेटर को कोरोनरी धमनियों तक सावधानीपूर्वक ले जाया जाता है। बाद में एक्स-रे डाई को धमनियों के अंदर डालकर धमनियों की स्थिति और रुकावट को देखा जाता है।
• एंजियोप्लास्टी: धमनियों में रुकावट की जगह का पता लगाने के बाद एक गाइड तार को रुकावट के आर-पार डाला जाता है। फिर एक गुब्बारे नुमा कैथेटर को तार की सहायता से रुकावट की जगह तक ले जाया जाता है। रुकावट की जगह तक पहुंचने के बाद गुब्बारे को फुलाकर रूकावट/ प्लाक को हटा दिया जाता है जिससे नस खुल जाती है और खून का बहाव दुबारा शुरू हो जाता है।
• स्टेंटिंग: स्टेन्ट एक धातु की जाली से बना होता है, जिसे स्टेन्ट कहा जाता है और जिसके ऊपर आमतौर पर ड्रग (डीईएस) का लेप लगा होता है। इसे गुब्बारे वाले कैथेटर के साथ रूकावट की जगह तक ले जाया जाता है। इसके बाद गुब्बारा फुलाया जाता है, जिससे नस फूल जाती है, और स्टेंट उस जगह पर स्थायी रूप से बना रहता है। डीईएस (DES) में दवाईयाँ होती है, जो धमनी में रेस्टोसिस की संभावना कम करती हैं।
प्रक्रिया पूरी करने से पहले यह जाँच लें की एन्जियोग्राफी हो गयी है। यह कोरोनरी धमनी के भीतर डाई के अच्छे प्रवाह की को निश्चित करने के लिए किया जाता है। प्रक्रिया में, रुकावटों (blockages) की सँख्या, कठिनाई का स्तर और किसी भी जटिलता की उपस्थिति के आधार पर कुछ अधिक समय लग सकता हैं।
कई बार एन्जियोप्लास्टी एक आपातकालीन प्रक्रिया के तौर पर भी की जाती है, जैसे ह्रदय घात और एक्यूट कोरोनरी सिंड्रोम के मरीजों में। इन मरीजों को एन्जियोप्लास्टी या एन्जियोग्राफी के लिए कैथ लैब में ले जाया जाता है। प्रक्रिया से पहले मरीज का मूल्याँकन, उसके लक्षणों, खून की जाँच, एक्स-रे तथा ईसीजी के आधार पर किया जाता है। गैरआपातकालीन स्थिति में अपने आप को प्रक्रिया के लिए तैयार करने के लिए कुछ निर्देशों का पालन करना पड़ता है।
• यदि आप कोई दवाई, पूरक (सप्लिमेंट) या आयुर्वेदिक तथा होम्योपैथिक दवाई ले रहै हैं, तो इसके बारे में चिकित्सक को बतायें।
• चिकित्सक आपकों एस्पीरिन, NSAIDs जैसी दवाईयों को बंद करने, या खुराक को बदलनें के लिए कह सकते हैं।
• यदि आपको किसी तरह की बीमारी या स्वास्थ्य से सम्बन्धित कोई समस्या है, तो इसके बारे में चिकित्सक को बतायें।
• यदि आप गर्भवती है तो इसके बारे में चिकित्सक को बतायें।
• जाँच से 8 घंटे से पहले तक न कुछ खाँये न पियें। चिकित्सक के कहने पर दवाई थोड़े पानी के साथ ली जा सकती है।
• यदि किसी दवाई या आयोडीन से आपको एलर्जी है, तो इसके बारे में चिकित्सक को बतायें।
प्रक्रिया को शुरू करने से पहले शरीर को शाँत करने के लिए तथा कैथेटर की जगह को सुन्न करने के लिए, डाॅक्टर आपको कुछ दर्द निवारक दवाई, खुन पतला करने की दवाई तथा सुन्न करने की दवाई देंगे।
इस प्रक्रिया के बाद, आमतौर पर मरीज अस्पताल में 1 या 2 दिन तक रहता है। यदि प्रक्रिया में कोई परेशानी नहीं हुयी हो, तो व्यक्ति 6 से 7 घंटो में चल-फिर सकता है। पूर्ण रूप से ठीक होने मे कई दिनों या हफ्तों का समय लग सकता है।
एन्जियोप्लास्टी के बाद अपना ध्यान कैसे रखें इसके बारे में और अधिक जानें।
ज्यादार लोगों में एन्जियोप्लास्टी अच्छा परिणाम दिखाती है, और पहले से सिकुड़ी तथा बंद हुयी धमनी में खून के बहाव में महत्वपूर्ण सुधार लाती है। हाँलांकि यह कोरोनरी आर्टरी डीजीज तथा स्टेनोसिस के दुबारा पनपने के खतरे का इलाज नहीं करती है। इसको रोकने के लिए मरीज को बतायी गयी दवाई लेनी चाहिये, तथा स्वस्थ्य जीवनशैली का अपनाना चाहिये जोकि इस प्रकार है।
• खून पतला करने की दवाई (एन्टी प्लैटिलेट्स ड्रग्स): खून पतला करने की दवाईयाँ जैसे एस्पीरिन, क्लोपिडोग्रेल आदि, एंजियोप्लास्टी के बाद महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती हैं। कुछ लोगों को जीवन पर्यन्त एस्पीरिन लेने की आवश्यकता पड़ती है। क्लोपिडोग्रेल को स्टेंटिंग के बाद लगभग 6 महीने से लेकर 1 साल तक दिया जाता है।
• कोलेस्ट्रोल और ब्लड प्रेशर को नियंत्रित करने की दवाईयाँ।
• स्वस्थ आहार लें, जैसे कि कम वसा और सोडियम युक्त भोजन।
• नियमित रूस से व्यायाम करें।
• कोलेस्ट्रोल से स्तर को कम रखें।
• शरीर के वजन को ठीक बनाये रखें।
• ब्लड प्रेशर और डायबिटीज पर नियंत्रण रखें।
• यदि आप धूम्रपान करते हैं तो उसे छोड़ दें।
• तनाव से दूर रहें और योग तथा साँस लेने के व्यायाम करें।
एन्जियोप्लास्टी एक कम अक्रामक प्रक्रिया है, जोकि काफी सुरक्षित है। हाँलांकि किसी अन्य प्रक्रिया की तरह इसमें भी जटिलताओं के उत्पन्न होने का खतरा जुड़ा होता है।
एन्जियोप्लास्टी से जुड़े खतरे इस प्रकार है:
इसमें एन्जियोप्लास्टी के बाद 1 से 6 महीने के बीच ठीक की गयी कोरोनरी धमनी में दुबारा से सिुकड़न औऱ रूकावट आ जाती है। मरीजों को आमतौर पर तब लाया जाता है, जब उन्हें चलने फिरने के दौरान सीने में दर्द होता है, या धमनी (आर्टरी) के लुमेन में 50 प्रतिशत तक रूकावट आ जाती है। कुछ लोगों (लगभग 5-10 प्रतिशत) को ह्रदय घात होने के साथ लाया जाता है।
रेस्टेनोसिस के उत्पन्न होने के जोखिम इस प्रकार है:
• डायबिटीज
• किडनी की कार्य क्षमता में कमीं
• 2.5mm से छोटी नस
• 40mm से बड़ी नस
केवल एन्जियोप्लास्टी से रेस्टेनोसिस के विकसित होने का खतरा लगभग 40-50 प्रतिशत है, वहीं धातु से इसका खतरा 16-32 प्रतिशत है। रेस्टेनोसिस के विकसित होने के संभावना ड्रग इल्यूडिंग स्टेंट से कम से कम होती है, जोकि लगभग 5-10 प्रतिशत है, यही कारण की आजकल इस्तेमाल होने वाले लगभग सभी स्टेंट DES (ड्रग इल्यूडिंग स्टेंट) होते है। डेस (DES) के साथ रेस्टेनोसिस की कीमत डेस (DES) के प्रकार (पहली या दूसरी पीढ़ी के स्टेंट), स्टेंट की लंबाई, स्टेंट के आकार, घाव के आकार, डायबिटीज की उपस्थिति पर निर्भर करती है।
रेस्टेनोसिस के बारे में और जाने।
थक्के का जमना एक अन्य समस्या है, जोकि स्टेंट की जगह पर होता है। यह रेस्टेनोसिस से भिन्न होता है, क्योंकि इसको जीवन के लिए अत्यंत गम्भीर खतरा माना जाता है, जिससे धमनी अचानक और पूर्ण रूप से बंद हो जाती है। थ्रोम्बोसिस आमतौर पर 1 महीने के अंदर होता है तथा इसके बाद थ्रोम्बोसिस होने की सम्भावना कम होती है। नयी तकनीकियों के साथ थ्रोम्बोसिस के विकसित होने का खतरा काफी कम हो गया है, जोकि एक साल के अंदर 0.7 प्रतिशत और उसके बाद 0.2 से 0.6 प्रतिशत है। उच्च प्रेशर बैलून एंजियोप्लास्टी और दो एन्टी प्लैटीलेट दवाईयों जैसे एस्पीरिन और क्लोपिडोग्रिल के इस्तेमाल से थक्का जमनें का खतरा कम हो जाता है।
स्टेंट थ्रोम्बोसिस के बारे में और जाने।
कुछ लोगों को हाँथ या पैर में कैथेटर डालने की स्थान से खून का रिसाव हो सकता है। आमतौर पर यह कम होता है, लेकिन खून के अधिक बहने से यह खतरनाक साबित हो सकता है। ऐसे मरीजों को खून चढ़ाने की, दबाव या सर्जिकल प्रक्रिया की आवश्यकता हो सकती है।
अन्य समस्याये जो हो सकती है वह है-
• किडनी खराब होना- यह मुख्यत: उन लोगों में होता है जिन्हें किडनी की बीमारी पहले से होती है, और कभी-कभी इन मरीजों में किडनी काम करना बंद कर सकती है।
• दिल की अनियमित धड़कन।
• आघात (स्ट्रोक): यह बहुत ही कम होता है। यह थक्के के एक जगह से दूसरी जगह जाने से होता है।
• सामग्री या स्टेन्ट सामग्री में उपयोग की जाने वाली दवाईयों से होने वाली एलर्जी- यह काफी दुर्लभ होता है।
• एन्जियोग्राफी में इस्तेमाल की जाने वाली डाई से होने वानी एलर्जी- यह काफी दुर्लभ होता है।
खतरे के संकेत उन जटिलताओं की ओर इशारा करतें है, जिनसे जीवन को खतरा हो सकता है, और जिनमें तुरन्त चिकित्सकीय सहायता की आवश्यकता पड़ती है:
1. सीने में दर्द या साँस लेने में परेशानी: यह दिल के दौरे या एनजाइना के पिछले एपिसोड के समान या अलग हो सकता है। यह स्टेंट के अंदर रेस्टेनोसिस या थ्रोम्बोसिस के विकसित होने का संकेत दे सकता है।
2. कैथेटर के अंदर डालने की जगह से खून का रिसाव
3. कैथेटर के अंदर डालने की जगह पर दर्द, सूजन या रंग बिगड़ना: यह कैथेटर के अंदर डालने की जगह पर खून के रिसाव या थक्के के जमने की ओर संकेत करता है।
4. पेट और जाँघ के बीच के भाग, जहाँ से कैथेटर डाला जाता है उसके तापमान और रंग में परिवर्तन– यह खून की आपूर्ति में रूकावट को दर्शाता है।
5. बुखान, दर्द या कैथेटर के स्थान से रिसाव संक्रमण के संकेत मिलते हैं।
6. चेहरे का बिगड़ना, अंगों में कमजोरी या बोलने में लड़खड़ाहट आघात (स्ट्रोक) का संकेत देता है।
7. थकावट या चक्कर आना।
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