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कोरोनावायरस, एक प्रकार का वायरस है जोकि कोरोनाविडी फैमिली से संबंधित है। कोरोनावायरस के सैकड़ों प्रकार है, जोकि ज्यादातर चमगादड़, सूअर, बिल्लियों और ऊंटों जैसे जानवरों के शरीर में पाये जाते हैं।
इन कोरोना वायरसों का नाम इनकी मुकुट जैसी बनावट के आधार पर रखा गया है। इनकी सतह पर कई सारे स्पाइक्स होते है, जो दिखने में मुकुट के ऊपर लगे बिंदु जैसे प्रतीत होते हैं।
इनकी खास बात यह है कि, ये वायरस आरएनए के केवल एक कतरे से बने होते हैं।
कोरोनावायरस, मोटे तौर पर 4 प्रकार के होते है, जैसे अल्फा, बीटा, गामा, और डेल्टा। इन सभी कोरोना वायरस में से केवल 7 वायरस ही मनुष्यों को संक्रमित करते है, जिनमें से केवल चार,को ही कम या मध्यम बीमारी का कारण माना जाता है। ये वायरस काफी आम हैं, जिनसे सर्दी जैसी आम समस्या होती है:
1. एच-सीओवी 229E (अल्फा कोरोनावायरस)
2. एच-सीओवी NL63 (अल्फा कोरोनावायरस)
3. एच-सीओवी OC43 (बीटा कोरोनावायरस)
4. एच-सीओवी HKU1 (बीटा कोरोनावायरस)
बाकी बचे 3 वायरस की पहचान पिछले केवल 20 साल में ही हुयी है। इन वायरस के कारण होने वाला संक्रमण, अधिक जटिलताओं और मृत्यु का कारण माना जाता हैं। ये वायरस इस प्रकार हैं:
1. सार्स कोरोनावायरस (सार्स-सीओवी): जिसके कारण सिवियर अक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (सार्स) महामारी हुयी थी, जो नवंबर 2002 में शुरू और 2004 (बीटा कोरोनावायरस) में समाप्त हुयी थी।
2. मर्स कोरोनावायरस (मर्स-सीओवी): जो मिडिल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम (मर्स) महामारी का कारण बना था, जो सितंबर 2012 में शुरू हुआ था और जिनके कुछ छिटपुट मामले आज भी सामने आते हैँ।
3. सार्स कोरोनावायरस 2 (सार्स-सीओवी-2): यह वायरस वर्तमान महामारी के लिए जिम्मेदार है, जो चीन के वुहान शहर में दिसंबर 2019 में शुरू हुआ था और अभी भी फैल रहा है।
इस महामारी प्रसार मुख्य रूप से, एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में श्वसन बूंदों के माध्यम से होता है। ऐसा माना जाता है कि, यह वायरस हवा में मौजूद साँस की छोटी-छोटी बूँदो में मौजूद होते हैं। ये बूँदे व्यक्ति द्वारा खांसने, छींकने या बातचीत करने से पैदा होती है। ये बूंदें बहुत हल्की होती हैं, और हवा में तैरकर एक से दूसरी जगह जा सकती हैं। इस प्रकार सीडीसी नें, लोगों को एक दूसरे से कम से कम 6 फुट या 2 मीटर की दूरी बनाये रखने की सलाह दी है ।
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कई देशों में किये गये अध्ययनों से यह पता चला है कि, वायरस एक स्वस्थ दिखने वाले संक्रमित व्यक्ति से भी फैल सकता है, जिसे एसिम्प्टोमैटिक कैरियर कहा जाता है। इन व्यक्तियों में आमतौर पर कोई लक्षण विकसित नहीं होते हैं, या फिर लक्षणों के विकसित होने में कई दिन लगते है। एक अध्ययन से पता चला है कि, संक्रमित व्यक्ति लक्षण विकसित करने से पहले, 1 या 2 दिनों में अपने चरम पर वायरस रिलीज करता है।
सतह से फैलना: जब कोई व्यक्ति किसी ऐसी सतह को छूता है, जिस पर वायरस मौजूद होता है, और जब उ्न्हीं हाँथों से वह चेहरे, मुंह, नाक या आंखों को छूता है, तो यह वायरस तब भी फैल सकता है। हाँलांकि, इसे वायरस के प्रसार की एक प्राथमिक विधि के रूप में नहीं माना जाता है।
संक्रमित मल से फैलना: संक्रमित व्यक्ति के मल द्वारा वायरस के प्रसार पर विचार किया गया है, लेकिन यह पूरी तरह से सिद्ध नहीं हुआ है। कुछ अध्ययनों में संक्रमित व्यक्ति के मल में वायरस पाया गया है, जो इस धारणा का समर्थन करता है।
यह जानने के लिए कि, सार्स-CoV-2 वायरस मनुष्यों को कैसे संक्रमित करता है, हमें वायरस के बारे में कुछ बातों को समझने की जरूरत है। वायरस मुख्य रूप से दो घटकों से बना है:
बाहरी प्रोटीन परत: वायरस का बाहरी आवरण प्रोटीन से बना होता है, जिसमें स्पाइक जैसे प्रोजेक्शन होते हैं, जो वायरस को मानव कोशिकाओं की सतह पर चिपका देते हैं, और जिससे वह शरीर के अंदर प्रवेश कर जाता है।
आंतरिक आनुवंशिक सामग्री: वायरस के अंदर एक सिंगल-स्ट्रैन्ड आरएनए होता है, जो नए वायरस का उत्पादन कर सकता है। हालांकि, यह वायरस तब तक नहीं बढ सकता है, जव तक कि उसे वायरस कोशिकाओं का उत्पादन करने के लिए मानव कोशिकायें न मिलेँ।
माना जाता है कि, सार्स-सीओवी-2 वायरस के बढ़ने के लिए, मानव कोशिकाओं पर मौजूद ACE2 रिसेप्टर्स, काफी अनुकूल होते है। ये श्वसन प्रणाली, विशेष रूप से फेफड़ों में मौजूद होते हैं। ये शरीर के अन्य अंगों में भी पाए जाते हैं, जैसे दिल, लिवर, किडनी आदि।
माना जाता है कि, यह वायरस मानव शरीर में, नाक, मुंह और आंखों के जरिए प्रवेश करता है। इसके बाद यह, यह श्वसन तंत्र की म्यूकस परत से खुद को जोड़ता है, और ACE2 रिसेप्टर्स के माध्यम से मानव कोशिकाओं में प्रवेश करता है। मानव कोशिकाओं के अंदर पहुँचने के बाद, यह प्रोटीन बनाने वाले तंत्र पर नियंत्रण कर लेता हैं। यहाँ से, यह वायरस, मानव कोशिकाओं की मदद से लाखों वायरस पैदा करके, उसे शरीर के विभिन्न हिस्सों में फैला देता है।
ये वायरस एक विशेष प्रकार की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं जिन्हें, सिलियरी कोशिकाएं कहा जाता है। इन कोशिकाओं में बालों की तरह प्रोजेक्टर होते हैं, जो श्वसन तंत्र से बलगम (श्वसन तंत्र में सुरक्षात्मक तरल पदार्थ) को बाहर निकालने के लिए लयबद्ध तरीके से काम करते हैं। इन कोशिकाओं को नुकसान पहुंचाकर यह वायरस फेफड़ों के भीतर बलगम के जमने का कारण बनता है। और इस तरह हवा से ऑक्सीजन को फेफड़ों में जाने मे परेशानी पैदा करता है।
इसके साथ-साथ, वायरल इंफेक्शन में बढ़ोतरी, इम्यून सिस्टम को उत्तेजित करती है। इस तरह, संक्रमण से लड़ने के लिए फेफड़ों में इम्यून सेल्स का संचार होता है। कोरोनावायरस के मध्यम से गंभीर मामलों में, संक्रमण के परिणामस्वरूप एक अनियंत्रित प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया होती है। इससे फेफड़ों की सामान्य कोशिकाओं को नुकसान पहुंचता है, जो फेफड़ों में तरल पदार्थ के लीक होने का कारण बनता है, जिससे ऑक्सीजन को अंदर लेने की क्षमता और कम हो जाती है। जैसे-जैसे नुकसान बढ़ता जाता है, वैसे- वैसे साँस लेने में दिक्कत बढ़ती जाती है। ऐसी स्थिति में श्वास मशीन या वेंटिलेटर की आवश्यकता होती है।
गंभीर रूप से बीमार मरीजों में, यह संक्रमण शरीर के दूसरे अंगों को भी नुकसान पहुँचाता है, जिससे अँग ठीक से काम करना बंद कर देते हैं, जोकि अंत में जानलेवा साबित होता है।
यह माना जाता है कि, नुकसान बेकाबू प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया और/या वायरल संक्रमण का ही परिणाम है।
• हृदय और रक्त वाहिकाएं: यह संक्रमण, गंभीर रूप से बीमार रोगियों में, कम रक्तचाप (लो बीपी), दिल की अनियमित लय (इरेगुलर रिदम), और दिल की क्षति आदि समस्याये पैदा करता है।
• गुर्दे की क्षति: कई अध्ययनों से पता चला है कि, यह बीमारी गुर्दे को गंभीर क्षति पहुचाँती है। वुहान में एक अध्ययन में 27 प्रतिशत रोगियों में एक्यूट किडनी फेलियर पाया गया है। इनमें से अधिकांश मरीज या तो बुजुर्ग थे, या उन्हें उच्च रक्तचाप (हाई बीपी) या दिल की विफलता (हार्ट फेलियर) जैसे कुछ पुराने रोग थे।
• लिवर की क्षति: कुछ अध्ययनों से यह पता चला है कि, यह बीमारी लिवर की कोशिकाओं को नुकसान पहुँचाती है।
• प्रतिरक्षा प्रणाली: प्रतिरक्षा प्रणाली का कार्य, वायरस सहित अन्य रोगाणुओं पर हमला करके, उनसे शरीर की रक्षा करना है। हालांकि, कभी-कभी गंभीर संक्रमण एक तेज प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया को ट्रिगर कर सकता है। इस तेज प्रतिक्रिया के कारण, शरीर की कोशिकाओं को नुकसान पहुंचता है, जिससे बहु-अंग विफलता (multi-organ failure) जैसी जानलेवा समस्या उत्पन्न हो जाती है।
इस बीमारी में साइटोकिन स्टोर्म नामक एक विशेष प्रकार की प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया भी देखी जाती है, जहां साइटोकिन नामक प्रोटीन अत्यधिक मात्रा में रिलीज होता है। इससे, दिमाग सहित शरीर के अन्य हिस्सों को व्यापक नुकसान हो सकता है।
• यह भी पाया गया है कि बच्चे इस संक्रमण से काफी हद तक सुरक्षित है, और यदि वह संक्रमित हैं भी, तो वह ज्यादा गंभीर नहीं है। यह संक्रमण के खिलाफ बच्चों में देखी गयी कम जटिल प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया के कारण माना जाता है ।
• दिमाग और तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम): कई अध्ययनों से यह पता चला है कि, कोविड-19 की वजह से दिमागी समस्याये पैदा हो रहीं हें। इस बीमारी को अब अक्यूट सेरेब्रोवास्कुलर डीजीज, एन्सेफेलोपैथी, विरोध और मानसिक भ्रम पैदा करने के लिए जाना जाता है।