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सीएबीजी एक ऐसी सर्जरी है जिससे बंद पड़ी हुयी धमनियों का इलाज किया जाता है, जो खून के दौड़ान को कम करती है, तथा जिसके कारण दिल का दौरा पड़ता है। जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है, सीएबीजी दिल में नई नाड़ी (बाईपास ग्राफ्ट) को बंद पड़ी हुयी धमनियों के आसपास या बाहर की जगह पर डालकर खून के दौड़ान को पुन: स्थापित करना है, इस तरह धमनियों के बंद पड़े हुये हिस्से को दरकिनार किया जाता है।
कोरोनरी धमनी की रूकावट या कोरोनरी हार्ट डीजीज के इलाज के लिए एक अन्य प्रक्रिया भी की जाती है, जिसे पर्क्युटेनियस कोरोनरी इंटरवेन्शन (पीसीआई) कहते हैं, जोकि आमतौर पर एंन्जियोप्लास्टी के नाम से जानी जाती है। इस प्रक्रिया में सीने को सर्जरी द्वारा खोला नही जाता है, जैसा की प्राय: सीएबीजी की प्रक्रिया में होता है। इस प्रक्रिया को कैथेटर नामक एक पतली नली को खून की नली के अंदर डालकर किया जाता है।
यह अनुमान है कि भारत में करीब 3 करोड़ से ज्यादा लोग कोरोनरी हार्ट डीजीज से पीड़ित हैं। पिछले चार दशकों में कोरोनरी हार्ट डीजीज 4 गुना बढ़ी है। शहरों में रहने वाले 10 में से कम से कम 1 लोग में यह बीमारी पायी जाती है।
कोरोनरी हार्ट डीजीज के कारण होने वाली मौतों में भी बढ़ोत्तरी हुयी है। ऐसा अनुमान है कि कोरोनरी हार्ट डीजीज के मरीजों में एक चौथाई (23 प्रतिशत) मौतें इस कारण होती हैं।
भारत में लगभग 60 हजार लोग सीएबीजी की प्रक्रिया से गुजरते हैं। भारत में सीएबीजी की पहली प्रक्रिया 1975 में हुयी थी जोकि इसके विकसित होने के 13 साल बाद हुयी थी, लेकिन आज भारत में बाईपास सर्जरी अमेरिका से ज्यादा हो रही है। भारत में लगभग 10-12 प्रतिशत शहरी जनसंख्या कोरोनरी हार्ट डीजीज से पीड़ीत है। भारत के युवाओं में कोरोनरी हार्ट डीजीज अन्य देशों के मुकाबले ज्यादा और उच्च चरण में होती है।
सीएबीजी की लागत अस्पताल, उसकी प्रतिष्ठा, चिकित्सक के अनुभव और प्रक्रिया के साथ, अलग-अलग होती है। निजी अस्पतालों में इसकी लागत औसतन 2 से 4 लाख तक होती है। वहीं, सरकारी अस्पतालों में इसकी लागत लगभग 1 लाख तक हो सकती है।
सीएबीजी की सफलता की दर मृत्यु दर (लगभग 6.6 प्रतिशत) से अधिक होती है, जिसमें सर्जरी के बाद या उसके दौरान 100 में से 6-7 मरीजों की मौत हो सकती है।
सफलता की दर निम्नलिखित सम्बन्धित कारकों पर निर्भर करती है जैसे-
• अधिक उम्र
• डायबिटीज, फेफड़े की बीमारी, किडनी की बीमारी इत्यादि का होना
• दिल की माँशपेशियों के कामकाज में कमी
• कोरोनरी आर्टरी को छोटा होना जैसा कि महिलाओं में देखा गया है
जोखिम के आधार पर मृत्यु दर अलग-अलग हो सकती है, जैसे कम जोखिम में 1 प्रतिशत से कम तथा ज्यादा जोखिम में लगभग 20 प्रतिशत तक। सीएबीजी के लिए ठीक तरह से चुने गये मरीजों में परिणाम अच्छे आते हैं, जिसमें लगभग 85 प्रतिशत लोगों कों लक्षणों में महत्वपूर्ण राहत मिलती है, दिल के दौरे और सर्जरी के 10 दिन के अन्दर मौत की सम्भावना कम होती है।
ऐसा पाया गया है कि बाईपास सर्जरी के मरीजों की बचने की दर 1 महीने के गुजर जाने के बाद, आम लोगों की तरह होती है, लेकिन सर्जरी के 8-10 सालों के बाद मृत्यु दर काफी बढ़ जाती है।
सीएबीजी एक सर्जिकल प्रक्रिया है, जो कोरोनरी हार्ट डीजीज के इलाज के लिए की जाती है। कोरोनरी हार्ट डीजीज से ग्रसित सभी रोगियों में सर्जरी की आवश्यकता नही होती है, उन्हें जीवनशैली में बदलाव तथा दवाईयों या एंन्जियोप्लास्टी द्वारा ठीक किया जा सकता है
सीएबीजी और एंन्जियोप्लास्टी तब की जाती है, जब बड़ी धमनी में गंभीर रुकावट होती है या दिल के कार्य करने की क्षमता कमजोर हो जाती है। एंन्जियोप्लास्टी स्टेंट (जाल जैसी नली जिसको धमनियों के अंदर डाला जाता है जिससे की वह खुली रह सके) के लगाने के साथ या उसके बिना तुरंत आराम पहुँचाती है और इसमें सीने को खोलने की जरूरत भी नहीं पड़ती है, लेकिन यह सभी मरीजों में नही की जा सकती है।
सीएबीजी निम्न परिस्थितियों में बेहतर समझी जाती है:
• डबल या ट्रिपल वेजल डीजीज (जव दिल के दो या तीन मुख्य रक्त नलिकाओं में बीमारी होती है) जहाँ पर बाँयी वेंट्रिकल ठीक से काम नही कर रही हो।
• बाँयी कोरोनरी धमनी में गंभीर कोरोनरी आर्टरी डीजीज
• जब एंन्जियोप्लास्टी नहीं हो पाती है, या फिर वह सफल नहीं होती है या कोरोनरी धमनी में दुबारा से सिकुड़ जाती है।
• डायबिटीज
कोरोनरी बाईपास सर्जरी के बाद आपको जीवनशैली में परिवर्तन की आवश्यकता होती है। कोरोनरी बाईपास सर्जरी के बाद खून में कोलेस्ट्रोल को कम करने के लिए, खून के थक्कों के खतरें को कम करने के लिए और आपके दिल के सही काम करने के लिए आपको नियमित दवाईयाँ दी जाती है।
सीएबीजी साधारण एनीस्थीसिया के दिये जाने के बाद की जाती है, जिसमें मरीज अपनी चेतना और दर्द के अहसास को खो देता है। साँस लेने के लिए मरीज को वेंटिलेटर पर रखा जाता है। सीएबीजी में सर्जन सीने, हाथ या पैर से रक्त नलिका को लेकर उसको कोरोनरी धमनी के रूके हुये हिस्से के ऊपर और नीचे लगाकर सिल देता है। इससे खून रुकी हुयी धमनियों को बाइपास करके दिल की माँसपेशियों तक लगातार पहुँचता रहता है, जिससे दिल के दौरे का खतरा खत्म हो जाता है। इस्तेमाल की जाने वाली रक्त नलिकाओं की सँख्या की आवश्यकता रूकावट के स्थान और उसकी गंभीरता पर निर्भर करती है। सीएबीजी सर्जरी कई प्रकार की होती हैं, लेकिन बाईपास रक्त नलिकाओं को लगाने का आधार वही रहता है:
पारंपरिक सीएबीजी/ ओपन हार्ट बायपास सर्जरी: यह सबसे ज्यादा की जाने वाली सीएबीजी सर्जरी होती है। इस सर्जरी में 3 से 6 घंटे का समय लगता है। इस प्रणाली में सर्जन छाती में एक लंबा चीरा लगाकर उसे खोल देता है। दिल की धड़कन को रोकने के लिए कुछ दवाईयाँ दी जाती है जिससे की रक्त नलिकाओं को आसानी से बांधा जा सके। इस दौरान एक मशीन का इस्तेमाल किया जाता है जिसे हार्ट-लंग बाईपास मशीन कहते है जो दिल का काम करती है।
इसमें हाथ, पैर और सीने से ली गयी रक्त नलिकाओं को धमनी के रुके हुये हिस्से के चारों ओर लगा दिया जाता है, जिससे खून के बहाव के लिए एक बाइपास बन जाता है। सारी रक्त नलिकाओं के बाँधने के बाद चिकित्सक दिल की धड़कन को पुन: स्थापित करते हैं। आमतौर पर दिल अपने आप ही धड़कना शुरू हो जाता है लेकिन कुछ मरीजों में हल्के बिजली के झटके की आवश्यकता पड़ती है। इसके बाद सर्जन छाती को बंद करके उसको सिल देता है।
आफ पम्प/ बीटिंग हार्ट बाइपास सर्जरी: जैसा की नाम से ही प्रतीत होता है, इस प्रक्रिया में हार्ट-लंग बाईपास मशीन का उपयोग नहीं होता है। यह सर्जरी दिल के लगातार धड़कने के साथ होती है, जिसे एक मैकेनिकल यंत्र द्वारा स्थिर किया जाता है। दिल के लगातार धड़कने के कारण इस सर्जरी को करनें में बहुत कठिनाईयाँ आती है। लेकिन कुछ लोग जिनकी उम्र अधिक होती है, या जिन्हें डायबिटीज, फेफड़ों की बीमारी, किडनी की बीमारी या वेंट्रिकुलर डिसफंक्शन जैसी समस्यायें होती है, उन लोगों में इसे सुरक्षित विकल्प माना जाता है। इन मरीजों में हार्ट-लंग बाईपास मशीन के इस्तेमाल से अन्य समस्याओं के पनपने की सम्भावना बढ़ जाती है।
न्यूनतम इनवेसिव सीएबीजी: यह सर्जरी सीने के बाँयी ओर रुकी हुई धमनी के ठीक ऊपर एक छोटा चीरा लगाकर की जाती है। कभी- कभी यह सर्जरी रोबोट की सहायता से की जाती है, जिसमें ग्राफ्ट रक्त नलिकाओं को हाँथों के बजाय रोबोट से अंदर डाला जाता है।
हाईब्रिड सर्जरी: इस प्रक्रिया में रोबोट का इस्तेमाल मुख्य धमनी को बाइपास करने के लिए किया जाता है, जहाँ पर स्टेंट का प्रयोग अन्य रुकी हुयी धमनियों को खोलने के लिये किया जाता है। इस प्रक्रिया का इस्तेमाल तब होता है, जब सर्जन पारंपरिक बाइपास सर्जरी को करने में अक्षम होता है।
सीएबीजी करने से पहले कोरोनरी हार्ट डीजीज का पता लगाने तथा दिल की कार्यप्रणाली का आंकलन करने के लिए चिकित्सक कई प्रकार की जाँचें करवा सकता है।
यह इस प्रकार हैं:
• इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम (ईसीजी): इस जाँच में दिल की विधुतीय गतिविधी को रिकार्ड करने के लिए सीने पर विभिन्न प्रकार की तारें लगायी जाती है। विधुतीय गतिविधी को रिकार्ड करके चिकित्सक दिल की सम्पूर्ण कामकाज, दिल के दौरे के लक्षण तथा उसके नुकसान के बारे में अंदाजा लगाते है।
• स्ट्रेस टेस्ट: यह जाँच तनाव के दौरान दिल के कामकाज का आँकलन करती है। यह जाँच तनाव के दौरान विधुतीय गतिविधी को रिकार्ड कर धमनियों में रूकावट का पता लगाती है, जोकि दिल की माँशपेशियों में खून के बहाव को रोकती है। तनाव शारीरिक गतिविधियों जैसे ट्रेडमिल पर चलकर या दवाईयों से प्रेरित हो सकता है।
• इकोकार्डियोग्राम: इस जाँच में अल्ट्रासाउन्ड किरणों और डोपलर द्वारा दिल के ढाँचे और उसके कामकाज को देखा जाता है। यह जाँच इजेक्शन फ्रैक्शन की गणना करके दिल के कामकाज का सही आँकलन लगाता है।
• कोरोनरी एंन्जियोग्राफी: इस जाँच में डाई को कोरोनरी धमनियों के अँदर डाला जाता है और एक्स-रे (फ्लुरोस्कोपी) का इस्तेमाल करके रक्त नलिकाओं की माप और दशा का पता लगाया जाता है। इस प्रक्रिया में पतली नली जिसे कैथेटर कहते है को धमनी के अंदर डालकर कोरोनरी धमनियों के आखिर तक ले जाया जाता है। यह बीमारी की गंभीरता, सम्मिलित धमनियों की सँख्या और प्रभावित धमनी की स्थिति को दर्शाता है। इस जाँच के बाद कई मामलों में पीसीआई/ एंन्जियोप्लास्टी भी हो सकती है।
• कोरोनरी कैल्शियम स्कैन: सीटी स्कैन द्वारा कोरोनरी आर्टरी डीजीज के तहत कोरोनरी धमनियों की सतह में मौजूद कैल्शियम की मात्रा की गणना की जाती है।
• सीटी एंन्जियोग्राफी: इस जाँच में कोरोनरी धमनी में कोन्ट्रास्ट भरकर सीटी स्कैन द्वारा उसका चित्र लिया जाता है। कुछ मरीजों में जिनमें कार्डियक कैथेटेराईजेशन की आवश्यकता होती है, उनमें यह एक सुरक्षित विकल्प हो सकता है।
तैयारी: सीएबीजी की योजना समय से पहले बनायी जा सकती है या इसे आपातकालीन स्थिति में किया जा सकता है जैसै कि दिल के दौरे के बाद जिससे दिल को गंभीर क्षति होती है। यदि आपकी सर्जरी निर्धारित है तो आप अपने चिकित्सक से तैयारी और उम्मीदों के बारे में बात करें जैसे कि:
• कौन सी दवाई आपको बंद करनी चाहिये। उन सभी दवाईयों के बारें में पूँछे जो आप लेते हैं भले ही वह पर्चे पर न लिखी गयी हों।
• कौन सी दवाई आपको शुरु करनी चाहिये।
• सर्जरी से पहले आपको कैसे नहाना चाहिये। आपको नहाने के लिए विशेष प्रकार के साबुन के इस्तेमाल के लिए कहा जा सकता है।
• सर्जरी से पहले खाना पीना कब बंद करना चाहिये।
• अस्पताल में कब आना चाहिये और कहाँ जाना चाहिये।
• सर्जरी के बाद और ठीक होने के दौरान क्या उम्मीद रखनी चाहिये।
आपके चिकित्सक आपसे इलाज के विकल्पों, जिसमें सर्जरी के दौरान या उसके बाद में होने वाले संभावित जोखिमों के बारे में बातचीत करेंगे। आप अपने चिकित्सक से अपना कोई भी सवाल पूँछे ताकि आप अपने इलाज के लिए बेहतर विकल्प चुन सकें।
हर प्रकार की सर्जरी के साथ कोई न कोई जोखिम जुड़ा होता है। कुछ लोगों में यह जोखिम ज्यादा होता है, जैसे कि जिनकी सीएबीजी आपातकालीन परिस्थितियों में होती है या जिनके शरीर की अन्य धमनियों में प्लाक होता है, या फिर उन्हें कोई बीमारी होती है जैसे दिल की गंभीर विफलता या फेफड़े और गुर्दे की बीमारी। संभावित गंभीर खतरों में शामिल है:
• खून का बहना: इसको नियंत्रण में करने के लिए मरीज को एक और सर्जरी की आवश्यकता पड़ सकती है।
• दिल की अनियमित धड़कन (अरिदमिया): सबसे आम एट्रिएल फिब्रिलेशन होती है जोकि अपनें आप ही ठीक हो जाती है।
• संक्रमण: संक्रमण सीने की चमड़ी पर जहाँ पर चीरा लगाया जाता है या सीने के अंदर सर्जरी के स्थान पर हो सकता है। इसमें भी अतिरिक्त सर्जरी के आवश्यकता पड़ सकती है।
• सर्जरी के बाद होने वाली संज्ञानात्मक गिरावट- Postoperative cognitive decline (POCD): कुछ लोगों में सर्जरी के बाद याद्दास्त के अस्थायी रूप से चले जाने, उलझन की स्थिति, सोचने में परेशानी, देखने की समस्या, बोलने में लड़खड़ाने जैसी समस्यायें थोड़े समय के लिए हो सकती है। इसका सटीक कारण ज्ञात नही है, लेकिन बहुत सारे कारक जैसे कि सर्जरी से पहले मरीज की स्वास्थ्य की स्थिति को इसके जोखिम का कारक समझा जाता है।
• दिल का दौरा।
• किडनी खराब हो जाना।
• घात (स्ट्रोक)
सामान्यत: मरीज अस्पताल में लगभग 1 हफ्ते तक रहता है, जहाँ पर उसके ठीक होने तक उस पर गहरी निगरानी रखी जाती है। जटिलताओं के मामलें में या सीएबीजी के साथ की गयी अन्य प्रक्रियाओ के मामलों में, मरीज को अस्पताल में लंबे समय तक रखा जा सकता है। सर्जरी के बाद मरीज को गहन चिकित्सा केंद्र (आईसीयू) में 1 से 2 दिन तक रखा जाता है, जिसके बाद मरीज को वार्ड/ कमरे में स्थानांतरित किया जाता है। चिकित्सकों की टीम मरीज के ठीक होने पर गहरी निगरानी रखती है और निम्न कार्य करती है:
• ह्रदय गति, रक्त चाप, स्वांस दर और आक्सीजन पर निगरानी रखना।
• सर्जिकल घाव का ध्यान रखना।
• सीने और मूत्राशय में नलियों को डालकर द्रव को बाहर निकालना तथा उसकी मात्रा पर निगरानी रखना।
• इसीजी मशीन द्वारा दिल के गतिविधी और लय पर निगरानी रखना।
• कुछ समय के लिए पेसमेकर डालकर दिल की धड़कन को नियंत्रित करना।
• दर्द को कम करने के लिए तथा संक्रमण, डीवीटी, दिल की अनियमित धड़कन जैसी जटिलताओं के लिए दवाई देना।
• पैरों में सिकुड़े हुये मोजे पहनना जिससे रक्त के ठहराव और डीवीटी को रोका जा सके।
सर्जरी के बाद ठीक होने में कितना समय लगता है? और ठीक होने के दौरान मरीज को क्या समस्यायें हो सकती है?
गैर जटिल मामलों में मरीज 1 हफ्ते के बाद घर जा सकता है। इस दौरान मरीज रोजमर्रा के कामों जैसे टहलने या सीढ़ी चढ़ने के लिए पूरी तरह फिट नही होता है, या उसको निम्न समस्यायें हो सकती हैं।
• सीनें में दर्द, सीनें में चीरे के स्थान पर खुजली या असहजता का महसूस होना।
• मांसपेशियों में दर्द, थकावट, चिड़चिड़ापन या तनाव।
• नींद और भूख का कम हो जाना।
• कब्ज
मरीज को पूरी तरह से ठीक होनें मे 4 से 6 हफ्ते का समय लग सकता है, इसके बाद वह कठिन शारीरिक व्यायाम तथा यौन गतिविधी शुरु कर सकता है। उन लोगों में जिनमें न्यूनतम इनवेसिव सीएबीजी होती उनके ठीक होने में कम समय लगता है।
सर्जरी के बाद ठीक होने के दौरान जटिलतायें उत्पन्न हो सकती हैं।
1. बाइपास रक्त नलिकाओं में रूकावट: सर्जरी के तुरन्त या कुछ सालों के बाद ग्राफ्ट रक्त नलिकाओं में रूकावट आ सकती है। जिस कारण दिल की मांसपेशियों में खून का बहाव कम हो सकता है, परिणामस्वरूप दिल का दौरा या अन्य समस्यायें उत्पन्न हो सकती हैं। व्यक्ति सीने में हल्के या तेज दर्द को महसूस कर सकता है। पेट के बीच या ऊपरी हिस्से मे हल्का दर्द हो सकता है जोकि निचोड़, दबाव या दिल में जलन की तरह महसूस होता है। दर्द बाँये हाथ, कंधे और गर्दन में फैल सकता है। यह परिणाम दिल के दौरे के संकेत देते हैं जिसमें तुरंत चिकित्सकीय मदद की आवश्यकता होती है।
2. घात (स्ट्रोक): कुछ मरीजों में सीएबीजी के बाद दिमाग और गले की रक्त नलिकाओं में थक्का जम जाने के कारण घात (स्ट्रोक) विकसित हो सकता है। व्यक्ति घात (स्ट्रोक) का पता एक सरल विधि को अपनाकर घर पर ही कर सकता है, जिससे की वह तुरंन्त कुछ कदम उठा सके। इस विधि को FAST के नाम से जाना जाता है।
• F (फेस- चेहरा): चेहरे के एक तरफ झुकाव को जाने। इसमें व्यक्ति को मुस्कराने के लिए कहकर जाँच कर सकते है।
• A (आर्म- कँधा): व्यक्ति के दोनों हाथ ऊपर उठाकर कँधे की माँसपेशियों की ताकत की जाँच करें कि वह हाथ ऊपर उठा सकता है या नही।
• S (स्पीच- बोली): व्यक्ति को एक वाक्य बारबार बोलने के लिए कहकर उसकी बोली में लड़खड़ाहट की जाँच कर सकते हैं।
• T (टाइम- समय): ये सभी लक्षण घात (स्ट्रोक) के संदेह को दर्शाते हैं और इसमें तुरंत मदद की आवश्यकता होती है। शुरूआती पहचान घात (स्ट्रोक) के प्रबंधन में काफी मददगार साबित हो सकती है जिससे दिमाग को क्षति से रोका जा सकता है।
3. संक्रमण: घाव या सर्जरी के जगह पर संक्रमण होने से बुखार हो सकता है या सफेद रक्त कोशिकायें बढ़ सकती हैं।