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गर्भाशय (यूटेरस) और योनि (वेजाइना) को जोड़ने वाले हिस्से में होने वाले कैंसर को सर्वाइकल कैंसर कहा जाता है। यह गर्भाशय ग्रीवा (सर्विक्स) की कोशिकाओं में असामान्य बढ़ोत्तरी के कारण होता है।
सर्वाइकल कैंसर, दुनिया भर में स्तन कैंसर के बाद महिलाओं को प्रभावित करने वाला दूसरा सबसे आम कैंसर है।
यह कैंसर आमतौर पर 35 साल से अधिक उम्र की महिलाओं को प्रभावित करता है। 60 तक की उम्र की महिलाओं में भी इसे देखा जा सकता है। इसकी औसत उम्र 52 साल है।
पिछले कुछ वर्षों में समाज में बेहतर जागरूकता, मध्यम आयु वर्ग की महिलाओं की अधिक स्क्रीनिंग, कैंसर रोधी दवाओं की उपलब्धता, नए सर्जिकल तौर-तरीके और एचपीवी रोधी टीकों के कारण मृत्यु दर में काफी कमी आई है। हम इस दिशा में काम कर रहे हैं !
मानव शरीर में सभी कोशिकाएं एक निश्चित दर से बढ़ती और खत्म होती हैं। नई कोशिकाओं और पुरानी कोशिकाओं के बीच एक संतुलन बना रहता है। कोशिकाओं के बनने और खत्म होने की इसी प्रक्रिया में गड़बड़ी के कारण कैंसर का विकास होता है।
कोशिकाओं में असामान्य बढ़ोत्तरी के कारण वह एक जगह इकट्टा हो जाती है, जिसके कारण “माॅस ” का गठन होता है। जब ये कोशिकाएं आकार में बढ़कर, ऊतकों को प्रभावित करते हुये अन्य क्षेत्रों में फैल जाती हैं, तब इसे मेटास्टेसिस (कैंसर का फैलाव) कहा जाता है।
कैंसर एचपीवी नामक वायरस के कारण होता है, जिससे सर्वाइकल टिश्यू/कोशिकायें प्रभावित होती है।
एचपीवी (ह्यूमन पेपिलोमा वायरस) संक्रमण सर्विक्स के कैंसर का सबसे आम कारण है। यह सर्वाइकल कैंसर के लगभग 99.7 प्रतिशत मामलों में मौजूद होता है।
कई सारे ह्यूमन पेपिलोमा वायरस मौजूद हैं, जिनमें से एचपीवी 16 और 18 सबसे आम हैं।
एचपीवी 16 आमतौर पर स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा से और एचपीवी 18 आमतौर पर एडेनोकार्सिनोमा से जुड़ा होता है। यह दोनों सर्वाइकल कैंसर के सबसे आम प्रकार हैं।
एचपीवी संक्रमण आमतौर पर यौन सक्रिय (सेक्स्युली एक्टिव) महिलाओं, या कई यौन भागीदारों (सेक्स्युल पार्टनर) वाली महिलाओं में देखा जाता है। लगभग 90 प्रतिशत से अधिक यौन सक्रिय (सेक्स्युली एक्टिव) महिलाएं एचपीवी से संक्रमित हो चुकी हैं, जिससे उनमें सर्वाइकल कैंसर होने का खतरा और अधिक बढ़ गया है।
• सिगरेट पीना सर्वाइकल कैंसर का दूसरा सबसे आम जोखिम कारक है। यह विकसित और पश्चिमी देशों के लोगों को अधिक प्रभावित करता है। धूम्रपान करने वाली महिलाओं में सर्वाइकल कार्सिनोमा का जोखिम 4.5 गुना अधिक होता है।
• कई यौन साथी (सेक्स्युल पार्टनर) होने से एचपीवी होने का खतरा बढ़ जाता है।
• कम प्रतिरक्षा (इम्युनिटी) वाले व्यक्ति सामान्य व्यक्तियों की तुलना में अधिक प्रभावित होते हैं, विशेष रूप से एचआईवी से ग्रसित व्यक्ति।
• कम सामाजिक आर्थिक वर्ग के लोग ज्यादातर जल्दी स्क्रीनिंग की खर्चा न उठा पाने के कारण, शिक्षा की कमी और खराब स्वच्छता के कारण अधिक प्रभावित होते हैं।
• गर्भावस्था के दौरान कुछ एस्ट्रोजन दवाओं का उपयोग, यदि किसी महिला का, गर्भावस्था के दौरान, गर्भपात की रोकथाम के लिए diethylstilbestrol नामक दवा के उपयोग का इतिहास है, तो उसमें सर्वाइकल कैंसर होने का खतरा बढ़ जाता है (क्लियर सेल adenocarcinoma प्रकार)।
• शुरुआती यौन उम्र, अगर कोई महिला बहुत कम उम्र में यौन रूप से सक्रिय हो जाती है, और 17 साल की उम्र से पहले गर्भवती हो जाती है, तो इससे कैंसर विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है।
• समता (पैरिटी), कई बार गर्भधारण करने से सर्वाइकल कैंसर का खतरा रहता है।
– असामान्य योनि रक्तस्राव (ब्लीडिंग)
– अंतर चक्रीय रक्तस्राव (इंटर साईक्लिक ब्लीडिंग)- मासिक के खत्म होने के बाद और शुरू होने के बीच रक्तस्राव (ब्लीडिंग)
– रजोनिवृत्ति (पोस्ट मिनोपोजल) के बाद रक्तस्राव
– योनि से पीला और बदबूदार निर्वहन (डिस्चार्ज)
– गर्भाशय में खून का एक जगह इकट्ठा हो जाना (हेमेटोमेट्रा)
– अनीमिया (कम एचबी स्तर)
– पीठ के साथ पेट के निचले हिस्से में दर्द जो पैरों तक जाता है
– पेशाब और मल गुजरने में कठिनाई (कैंसर मूत्राशय और मलाशय में फैलता है)
– योनि से मूत्र और मल का निकलना (फिस्टुला)
– पैरों की गहरी नसों के सम्मिलित होने के कारण दोनों पैरों की सूजन और ओडेमा।
• योनि के माध्यम से गर्भाशय ग्रीवा का दृश्य परिक्षण (स्पेकुलम एग्जामिनशन) सर्विक्स पर मौजूद किसी भी असामान्य वृद्धि या अल्सर को प्रकट कर सकता है, जिसको आमतौर पर छूने से खून निकलता है। मास या अल्सर का एक हिस्सा निकाल कर, कैंसर की पुष्टि के लिए प्रयोगशाला में भेजा जाता है, इस प्रक्रिया को सर्वाइकल बायोप्सी कहा जाता है।
• योनि के माध्यम से मूत्राशय, मलाशय या श्रोणि (पेल्विस) की दीवार को टटोलकर, आसपास के अंगों की सीमा और भागीदारी को महसूस किया जाता है।
• सामान्य शारीरिक परिक्षण, जो आमतौर पर देरी वाले मामलों में किसी भी प्रणालीगत भागीदारी को प्रकट कर सकती है, जैसे; में पेट और छाती में तरल पदार्थ का इकट्ठा हो जाना (एसाइट्स और प्लूर फ्यूजन), अनीमिया, ओडेमा- डीप लिम्फेटिक और किडनी की भागीदारी के मामलों में।
• सोनोग्राफी, सीटी स्कैन और पीईटी स्कैन भी कैंसर की सही भागीदारी की पहचान करने, कैंसर के फैलाव को जानने और उपचार की रूपरेखा तय करने में काफी मदद करता है ।
सर्वाइकल कैंसर आमतौर पर 3 अलग-अलग जगहों से फैलता है।
• मूत्राशय, मलाशय, योनि, गर्भाशय और गर्भाशय के चारों ओर की दीवारों जैसे आस-पास के अंगों में सीधा फैलाव।
• श्रोणि (पेल्विस) में विभिन्न लिम्फ नोड्स तथा शरीर में कहीं भी अन्य नोड्स में लिम्फेटिक फैलाव।
• खून की नसों के माध्यम से शरीर के किसी अन्य भाग में रक्त के द्वारा होने वाला फैलाव।
मानक अंतरराष्ट्रीय वर्गीकरण के अनुसार सर्वाइकल कैंसर के 4 चरण हैं।
• स्टेज 1 जो सर्विक्स के हिस्से तक सीमित होता है।
• स्टेज 2 जिसमें गर्भाशय का हिस्सा, योनि का ऊपरी हिस्सा शामिल हो सकता है, लेकिन पेल्विस की साइड वॉल तक नहीं पहुंचता है।
• स्टेज 3 जो साइड वाल्स तक पहुंचता है, और योनि के निचले हिस्से को शामिल कर सकता है, और मूत्राशय (ब्लैडर) में प्रवेश करते समय मूत्र नलियों पर दबाव के कारण, गुर्दे की समस्याओं का कारण बनता है।
• स्टेज 4 तब होता है जब कैंसर श्रोणि (पेल्विस) के बाहर बढ़ता है और इसमें मूत्राशय, मलाशय (रेक्टम) भी शामिल होते है, और इसमें पेट के अन्य अंग भी शामिल हो सकते हैं।
माइक्रोस्कोप के तहत किये गये परिक्षण के आधार पर सर्वाइकल कैंसर को निम्नलिखित वर्गो में वर्गीक्रत किया गया हैं, जैसे स्क्वैमस सेल कैंसर, एडेनोकार्सिनोमा, एंडोमेट्रियॉइड कार्सिनोमा, क्लियर सेल कैंसर, स्मॉल सेल कैंसर आदि।
• कैंसर केस्टेज 1 और स्टेज 2 के शुरुआती मामलों में सर्जिकल ट्रीटमेंट का इस्तेमाल किया जाता। इसके इलाज के लिए विभिन्न प्रकार के हिस्टेरेक्टॉमी किए जाते हैं, जो सर्जरी के बाद सामान्य जीवन प्रदान करते हैं। आजकल न्यूनतम इनवेसिव सर्जरी (एंडोस्कोपिक सर्जरी) और रोबोटिक सर्जरी का विकल्प भी विशेष केंद्रों पर उपलब्ध है, जो अच्छे परिणाम और न्यूनतम पोस्ट-सर्जरी मोरबिडीटी देता है।
• कैंसर के स्टेज 2 और उच्च स्टेज के रोगियों में आमतौर पर रेडियोथेरेपी की जाती है। यह सर्वाइकल कैंसर में कीमोथेरेपी से ज्यादा कारगर है, लेकिन यह कैंसर के सूक्ष्म प्रकार के आधार पर निर्भर करता है।
• स्टेज 3 या उससे अधिक में कीमोथेरेपी भी की जाती है, जहां कैंसर फैलने के कारण सर्जरी संभव नहीं होती है। इसका प्रयोग रेडियोथेरेपी के साथ किया जाता है, या उस समय जब रोगी रेडियोथेरेपी में कोई अच्छी प्रतिक्रिया नहीं दिखती है। इसके अलावा यह कैंसर के सूक्ष्म प्रकार पर निर्भर करता है। कुछ लोग रेडियोथेरेपी के लिए और कुछ लोग कीमोथेरेपी के लिए अच्छी प्रतिक्रिया देते हैं।
• संयुक्त चिकित्सा, जहां बेहतर परिणाम प्राप्त करने के लिए सर्जरी से पहले या बाद में रेडियोथेरेपी और कीमोथेरेपी दी जाती है। यह आमतौर पर स्टेज 2 के आखिरी या स्टेज 3 के प्रारंभिक मामलों की जाती है। यह सर्जरी का बेहतर परिणाम प्राप्त करने में मदद करता है।
35 साल से अधिक उम्र की महिलाओं को हर साल सर्वाइकल कैंसर की स्क्रिनिंग अवश्य करानी चाहिये। पैप स्मियर सर्वाइकल स्क्रीनिंग के लिए सबसे आम, आसान और सस्ती विधि है, जिसे रूटीन ओपीडी प्रक्रिया के रूप में किया जा सकता है। इस विधि में, सर्विक्स के ऊपर के बलगम को विशेष रूप से डिजाइन की गई लकड़ी की छड़ी के साथ लिया जाता है और स्लाइड पर लगाकर माइक्रोस्कोप के नीचे देखा जाता है। कैंसर से पहले की स्टेज जिसे सीआईएन (सर्वाइकल इंट्राएपिथेलियल नियोप्लासिया) को, कैंसर में बदलने से 7 से 20 साल पहले ही पहचाना जा सकता है। दुनिया भर में कई जानें (लाइफ), पैप स्मीयर के साथ नियमित स्क्रीनिंग की मदद से बचाये जा सकती है।
कोल्पोस्कोपी और वीआईए एक और स्क्रीनिंग विधि है, जिसमें सर्विक्स को, कैमरा लगे हुये विशेष यंत्र के साथ देखा जाता है। लेकिन ज्यादा खर्च और उपकरणों की कमी के कारण इसे विकासशील देशों में कम पसंद किया जाता है। इसके अलावा, इसमें गलतियों की अधिक संभावना होती है, जोकि गलत सकारात्मक (फाल्स पोजिटिव) या गलत नकारात्मक (फाल्स निगेटिव) परिणाम दे सकती है।
सबसे महत्वपूर्ण बात, इन दिनों एंटी एचपीवी (ह्यूमन पेपिलोमा वायरस) टीके उपलब्ध हैं। टीकों के साथ 10-15 साल पहले से ही ट्रायल किए जा चुके हैं, जिनमें यह काफी प्रभावकारी साबित हुये हैं। एचपीवी सर्वाइकल कैंसर का सबसे आम कारण है। यौन रूप से सक्रिय होने से पहले युवा लड़कियों का टीकाकरण करना बेहतर होता है, यह उन्हें जीवन भर सुरक्षा प्रदान करेगा, और भविष्य में सर्वाइकल कैंसर के मामलों को रोका जा सकेगा।